________________ शतकसंज्ञकः पञ्चमः कर्मग्रन्थः [39 देवाउमप्पमची तिव्वं खवगा 'करिति बत्तीसं / बन्धंति तिरयमणुया एकारस मिच्छभावेणं / / 70 // 77 // पंच सुरसम्मदिट्ठी सुरमिच्छो तिन्नि जयइ पयडीओ / उज्जोयं तमतमगा सुरनेरइया भवे तिहं // 71 / 78 / / सेसाणं चउगइया तिव्वणुभागं करिति पयडीणं / मिच्छद्दिट्ठी नियमा तिव्वकसाउक्कडा जीवा / / 72 / / 76 / / चोदस सरागचरिमे पंचगमनियट्टि नियट्टिएक्कारं / सोलस मंदणुभागं संजमगुणपत्थिओ जयइ / / 73 / 80 // आहारमप्पमत्तो पमत्तसुद्धो उ अरइसोगाणं / सोलस माणुसतिरिया सुरनारगतमतमा तिन्नि / / 74 // 81 // एगिदियथावरयं मंदणुभागं करेंति तिगईया / परियत्तमाणमज्झिमपरिणामा नेरइयवजा // 7 // 2 // आसोहम्मायावं अविरइमणुओ "य जयइ तित्थयरं / चउगइउक्कंडमिच्छो पन्नरस दुवे विसोहीए // 76 // 3 // सम्मट्ठिी मिच्छो व अट्ठ परियत्तमज्झिमो जयति / परियत्तमाणमज्झिममिच्छद्दिट्ठी उ तेवीसं // 77 // 84 // केवलनाणावरणं दंसणछक्कं च मोहबारसगं / ता सव्वघाइसन्ना हवंति मिच्छत्तवीसइमं // 78 // 8 // नाणावरणचउक्कं दंसणतिग मंतराइए पंच / पणुवीसदेसघाई संजलणा नोकसाया य // 79 // 86 // अवसेसा पयडीओ अघाइया "घाइयाहि पलिभागा / ता एव पुन्नपावा सेसा पावा मुणेयव्वा // 8 // 87 // आवरणदेसघायंतरायसंजलणपुरिससत्तरस / चउविहभावपरिणया तिविहपरिणया भवे सेसा // 8 // 8 // चउपच्चएगमिच्छत्तसोलसदुपच्चया य पणतीसं / सेसा तिपच्चया खलु तित्थयराहारषज्जाओ // 2 // 8 // पंच य छत्तिन्नि छ पंच दोन्नि पंच य हवंति अद्वैव / सरिराई फासंता पयडीओ आणुपुव्वीए // 3 // 6 // १“करंति" इत्यपि / 2 "कुणंति" इत्यपि / 3 “सरागचरमो" इत्यपि / 4 "करंति तेगइया''इत्वपि / 5 "उ" इत्यपि / 6 "अंतराइयं” इत्यपि / 7 "धाइयाइपलि०" इत्यपि / 8 "छत्तिगछप्पंच' इत्वपि।