________________ 38 ] शतकसंज्ञकः पञ्चमः कर्मग्रन्थः 'सव्वुक्कोसठिईणं मिच्छादिट्ठी उ बंधओ भणिओ / आहारगतित्थयरं देवाउं वा वि मुत्तूणं // 57 / 64 / / देवाउयं पमत्तो आहारगमप्पमत्तविरओ उ / तित्थयरं च मणुस्सो अविरयसम्मो समज्जेइ // 58 // 65 // पन्नरसण्हं ठिइमुक्कोसं बंधंति मणुयतेरिच्छा / छण्हं सुरनेरइया ईसाणंता सुरा तिण्हं // 59 // 66 // सेसाणं चउगइया ठिइ मुक्कस्सं करेंति पगईणं / उक्कोससंकिलेसेण ईसिमहमज्झिमेणावि // 60 // 67 / / आहारगतित्थयरं नियट्टिअनियट्टि पुरिससंजलणं / बंधइ सुहुमसरागो सायजसुच्चावरणविग्यं // 61 // 68|| छण्हमसन्नी कुणइ जहन्नठिई आउगाणमन्नयरो / सेसाणं पञ्जत्तो बायरएगिदियविसुद्धो // 62 // 66 // धाईणं अजहन्नोऽणुक्कोसो वेयणीयनामाणं / "अजहन्नमणुक्कोसो गोए अणुभागबंधम्मि / 63 / / 70 // 'साई अणाई धुवअधुवो य बन्धो उ मूलपयडी / / सेसंमि उ दुविगप्पो आउचउक्के वि दुविगप्पो // 64 // 71 // . अट्टाहमणुक्कोसो. तेयालाणमजहन्नगो बंधो / ओ हि चउविगप्पो सेसतिगे होइ दुविगप्पो // 65 // 72 // उक्कोसमणुक्कोसो जहन्नमजहन्नगो "य अणुभागो / साईअर्धवबंधो पयडीणं होइ सेसाणं // 66 // 73 // सुभपयडीण विसोहीइ तिव्वमसुहाण संकिलेसेणं / विवरीए उ जहन्नो अणुभागो सव्वपयडीणं // 67 / 74 // बायालंपि पसत्था विसोहिगुणउक्कडस्स तिव्वाओ / बासीइमप्पसत्था मिच्छुक्कडसंकिलिट्ठस्स // 68 // 75 / / आयवनामुज्जोयं माणुसतिरियाउगं पसत्थासु / मिच्छस्स हुंति तिव्वा सम्मद्दिहिस्स सेसाओ / / 69 / / 76 / / 1 'सव्वोकोस०" इत्यपि / 2 "य' इत्यपि / 3 "मुक्कोसं करंति" इत्यपि / 4 "जहन्न ठिइमा०" इत्यपि / 5 "अजहन्न अणुः" इत्यपि / 6 “साइअणाई" इत्यपि / 7 "वि" इत्यपि /