________________ . शतकसंज्ञकः पञ्चमः कर्मग्रन्थः सोलस मिच्छत्तता पणुवीसं होइ सासणंताओ / तित्थयराउदुसेसा अविरइअंताउ मीसस्स // 46 // 51 / / अविरयअंताओ दस विरया'विरयंतया उ चत्तारि / छच्चेव पमत्तंता एगा पुण अप्पमत्तंता // 47 // 52 // दो तीसं चत्तारि य, भागे भागेसु संखसम्भाए / चरमे य जहासंखं, अपुव्वकरणंतिया होति // 48 // 53 // संखेजइमे सेसे, आढत्ता बायरस्स 'चरिमंतो / पंचसु एक्केक्कंता, सुहुमंता सोलस हवंति // 46 // 54 // सायंतो जोगते. एत्तो परओ उ नत्थि "बंधो य / . 'नायव्वो पयडीणं बंधस्संतो अणंतो य // 50 // 55 // इगयाइएसु एवं तप्पाओग्गाणमोघसिद्धाणं / सामित्तं नेयव्वं पयडीणं ठाणमासज // 51 // 56 / / -सत्तरिकोडाकोडी अयराणं होइ मोहणीयस्म / तीसं आइतिगंते वीसं नामे य गोए य ॥५७॥(प्र०) तेत्तीसुदही आउम्मि केवला होइ एवमुक्कोसा / मूलपयडीण एत्तो ठिइं जहन्नं निसामेह ॥५८॥(प्र०) मूलठिईण ऽजहन्नो सत्तण्हं साइयाइओ बंधो / सेसतिगे दुविगप्पो आउचउक्केवि "दुविकप्पो // 52 / / 56 / / अट्ठारसपयडीणं अजहन्नो बंध चउविगप्पो य / , 'साईअअधुवबंधो सेसतिगे होइ बोद्धव्यो // 53 // 6 // उक्कोसाणक्कोसो जहन्नमजहबगो य ठिइबंधो / साईअअधुवबंधो सेसाणं होइ पयडीणं // 54 // 6 // सव्वासि पि ठिईओ सुभासुभाणंपि होति असुभाओ / माणुसतिरिक्खदेवाउगं च मोत्तण सेसाणं // 55 // 62 // 'सव्वढिईणमुक्कोसगो उ उक्कोससंकिलेसेणं / .. विवरीए उ जहन्नो आउगतिगवज्जसेसाणं // 56 // 63 / / १"०विरयंतियाउ" इत्यपि / 2 "तीसा" इत्यपि / 3 "चरमंते” इत्यपि। 4 "बन्धोत्ति' इत्यपि / 5 "दुविगप्पो" इत्यपि / 6-8 "साइयअव०" इत्यपि / 7 “जहन्नमजहन्नो" इत्यपि / 9 "सब्बठिईणं * 0" इत्यपि।