________________ शतकसंज्ञकः पञ्चमः कमग्रन्थः छप्पश्च उदीरन्तो बन्धइ सो छव्विहं तणुकसाओ / अट्ठविहमणुहवन्तो सुक्कझाणा 'डहइ कम्मं // 35 // 38 / / अट्ठविहं वेयन्ता छविहमुईरन्ति सप्त बन्धन्ति / अनियट्टी य नियट्टी अपमत्तजई य ते तिन्नि // 36 // 39 // अवसेसट्टविहकरा वेयन्ति उदीरगा वि अट्ठण्हं / सप्तविहगा वि वेइन्ति अट्ठगमुईरणे भजा // 37 // 40 // णाणस्स दंसणस्स य आवरणं वेयणीयमोहणियं / आउयनामं गोयं तहंतगयं च पयडीओ // 38 // 41 // पश्च नव 'दोनि अट्ठावीसा चउरो तहेव बायाला / "दोन्नि य पञ्च य भणिया पयडीओ उत्तरा चेव // 39 // 42 // साइअणाई धुवअधुवो य बन्धो य कम्मछक्कस्स / तइए 'साइयसेसो अणाइधुवसेसओ आऊ // 40 // 43 // उत्तरपयडीसु तहा धुविगाणं बन्धचउविगप्पो य / "साई अधुवियाओ सेसा परियत्तमाणीओ // 41 // 44 // : चत्तारि पयडिठाणाणि तिनि भूगारअप्पतरगाणि . / मूलपयडीसु एवं अवडिओ चउसु नायव्यो // 42 // 45 / / एगादहिगे पढमो एगादी ऊणगम्मि बीओ य / / तत्तियमित्तो तइओ पढमे समये अवत्तव्यो ॥४६॥(प्र०). तिन्नि दस अट्ठ ठाणाणि दंसणावरणमोहनामाणं / एन्थ 'य भूओगारो सेसेसेगं हवइ ठाणं // 43 / / 47 / / तेवीसपण्णवीसाछब्बीसाअट्ठवीसइगुतीसा.. / तीसेगतीस एगं बन्धट्ठाणाइ नामस्स ॥४८॥(प्र०) सव्वासि पगईणं मिच्छद्दिट्ठी उ बंधओ भणिओ / तित्थयराहारदुर्ग 'मोत्तूणं सेसपयडीणं // 44 // 46 // सम्मत्तगुणनिमित्तं तित्थयरं संजमेण आहारं / बझंति सेसियाओ मिच्छत्ताईहि हेऊहिं // 45 // 50 // 1 "दहइ" इत्यपि / 2-3 "दुन्नि" इत्यपि / 4 “साइगवज्जो" इत्यपि / 5 "साइग" इत्यपि पारः। . 6 "व" इत्यपि / 7 “पयडीणं" इत्यपि / 8 "मुत्तुं सतरुत्तरसयस्सा / / " इत्यपि /