________________ शतकसंज्ञकः पञ्चमः कर्मग्रन्थः [ 35 अणुवयमहव्वए हि य बालतवाकामनिज्जराए य / देवाउयं निबन्धइ सम्मद्दिट्ठी उ जो जीवो // 23 // 25 / / मणवयणकायवंको माइल्लो गारवेहि पडिबद्धो / असुहं बन्धइ 'कम्मं तप्पडिवक्खेहि सुहनामं // 24 // 26 / / अरहन्ताइसु भत्तो सुत्तरुई पयणुमाण-गुणपेही / बन्धइ उच्चागोयं विवरीए बन्धए इयरं // 25 / / 27 / / "पाणवहाईसु रओ जिणपूआमोक्खमग्गविग्धकरो / . अज्जेइ अन्तरायं न लहइ जेणिच्छियं लाभं // 26 // 28 // बंधट्ठाणा चउरो तिन्नि य उदयस्स हुन्ति ठाणाणि / पंच य उदीरणाए संजोयमओ परं वुच्छं / / 26 / / (प्र०) छसु ठाणगेसु सत्तट्ठविहं बन्धन्ति तिसु य सत्तविहं / छव्विहमेगो तिन्नेगबन्धगाऽबन्धगो एगो // 27 // 30 // सत्तट्टविह छ (विह) बन्धगावि वेएन्ति अट्ठगं नियमा / एगविह बन्धगा पुण चत्तारि व सत्त वेएन्ति // 28 // 31 / / मिच्छद्दिटिप्पभिई अट्ठ उदीरन्ति जा पमत्तो त्ति / अद्धावलियासेसे तहेव सत्तेवुदीरन्ति // 26 // 32 // 'वेयणियाऊवज्जे छकम्म उदीरयन्ति चत्तारि / अद्धावलियासेसे "सुहमो उदीरेइ पञ्चेव // 30 // 33 // वेयणियाउयमोहे वज्ज उदीरेन्ति दोन्नि पंचेव / अद्धावलियासेसे नामं गोयं च अकसाई // 31 // 34 // उइरेइ नामगोए छक्कम्मविवज्जिया सजोगो “य / वट्टन्तो य अजोगी न किञ्चि कम्मं उदीरेइ / / 32 / / 35 / / अणुईरन्त अजोगी अणुहवइ चउब्विहं गुणविसालो / इरियावहं न बन्धइ आसन्नपुरक्खडो सन्तो // 33 // 36 // इरियावहमाउत्ता चत्तारि व सत्त चेव वेदेन्ति / 'उईन्ति दुन्नि पश्च य संसारगयम्मि भयणिजा // 34 // 37 / / 1 ०हिं बा०' इत्यपि / 2 “य" इत्यपि। 3 "नाम" इत्यपि / 4 "पाणि." इत्यपि / 5 "०बन्धगो" इत्यपि। 6 “वेयणियाउय०" इत्यपि वा। 7 "सुहुमु उदीरेइ” इत्यपि। "सुहुमोदौरेइ" इत्यपि / 8 “उ” इत्यपि। / "उईरिन्ति" इत्यपि /