________________ बन्धस्वामित्वाख्यस्तृतीयः कर्मग्रन्थः साणा बंधहि सोलस, 'निरतिगहीणा य 'मोत्तु छनउई। ओघेणं वीसुत्तरसयं च पंचिंदिया बंधे // 23 // इगिविगलिंदी साणा, तणुपज्जत्ति न जंत्ति जंतेण / निरतिरियाउअबंधा, मयंतरेणं तु 'चउणउइं // 24 // मुदगवणकाया एगिदिसमा मिच्छसाणदिडीओ। मणुयतिगुच्च "मोत्तु, सुहुमतसा ओघ थूलतसा // 25 // मणवइजोगचउक्के, ओयो उरले वि ओपनरभंगो / निरतिगसुराउआहारगं तु हिच्चा उ तिमीसे // 6 // सुरदुग विउव्वियदुर्ग, तित्थं हिचा सयं नवग्गं तु / बंधंति उरलमिस्से, मिच्छा उ सजोगिणो सायं // 27 // निरतिगहीणा सोलस, तिरिनरआउं पिमोत्तु साणा वि / तिरियाउविहीणं पण्णवीसमुज्झितु अविरए ''बंधे // 28 // तित्थं वेउबिदुर्ग, सुरदुगसहियं उरलमिस्से / / सामन्नदेवनारयबंधो नेओ विउविजोगे वि // 29 / / वेउन्वियमीसम्मि वि, तिरियनराऊहि वजियासेसा / तित्थोणा ता मिच्छा, बंधहिँ साणा उ चउणउई // 30 // एगिदिथावरायवसंठाइचउकवज्जिया सेआ। . तिरियाऊणं पणुवीस "मोत्तु अजया सतित्था उ // 31 // तेवढाहारदुगे, जहा पमत्तस्स कम्मणे बंधो। आउतिगं निरयतिगं, आहारय वज्जिउं ओघो // 32 // सुरदुगतित्थविउब्वियदुगाणि १३मोत्तूण बंधहिँ मिच्छा / निरतिगहीणा सोलस, वज्जित्ता सासणा कम्मे // 33 // तिरियाऊणं पणवीस "मोत्तु सुरदुगविउव्विदुगजुत्तं / अजया तित्थेण समं, सजोगि सायं समुग्धाए // 34 // .. 1 "निरि०" इत्यपि। 2 "मुत्त छन्नउई" इत्यपि / 3 "इग" इत्यपि / 4 "चउणउई" 5 "मुत्त" इत्यपि / ६"मणवय०" इत्यपि / 7 "च" इत्यपि / "तम्मिस्से" इत्यपि / “वेउविदुगं" 10 "मुत्त" इत्यपि / 11 "बंधो" इत्यपि / 12 "मुत्तु" इत्यपि / 13 "मुत्तण” इत्यपि / 14 'मुत्तु” इत्यपि।