________________ [21 बन्धस्वामित्वाख्य स्तृतीयः कर्मग्रन्थः नरतिगसुराउउसमें, उरलदुगं 'मोत्तु पण्णवीसं च / अणुहत्तरिं तु मीसा, सुराउणा सत्तरी सम्मा // 11 // 'बीयकसायणा देस अपज्जत्ता सयं नवग्गं तु / मोत्तृणमोघबन्धा, निरसुरआउं विउव्विछवकं च // 12 // तिरिया व नरा पयडी, बंधंती मिच्छमाइया पंच / अजयाइ पंच तित्थं, अपमत्तनियट्टि आहारं // 13 // कम्मत्थयबंधसमो, पमत्तमाईण होइ बन्धो उ। अप्पजत्ता मणुया, तिरिया व सयं नवग्गं तु // 14|| वेउव्वाहारदुर्ग, नारयसुरसुहुमविगलजाइतिगं / "मोत्तु चउरग्गसयं, देवा बंधंति ओहेणं // 15 // तित्थोणं तं मिच्छा, साणा छेवट्ठहुडनपुमिच्छं / एगिदिथावरायवपयडी "मोत्तूण छनउई // 16 // ओघुत्तं पणुवीसं, नराउजुत्तं विवजिउं मीसा / बंधंति सयरिमजया, तित्थनराऊहिँ बिगसयरी // 17 // मिच्छाइअविरयंता, देवोघं तित्थहीण बंधंति / भवणवणजोइदेवा, देवीओ चेव सञ्चाओ // 18 // सामन्नदेवभंगो, सोहम्मीसाण मिच्छमाईणं / सहसारंता इगिथावरायवोणं सणंकुमाराई // 19 // रयणानारयसरिसा, सहसारंता . सणंकुमाराई / इगिथावरायवतिरितिगुजोऊणं तु आणयाईया // 20 // तित्थं 'नपुचउ तिरितियउज्जोऊण "पणवीस सनराउ / मोत्तूण मिच्छमाई, नराउतित्थेहिं अजया. उ // 21 // तित्थाहारं निरयसुराउ 'मोत्तु विउव्विछक्क च / * 'इगविगलिंदी बंधहि, नवुत्तरं ओघ मिच्छा य // 22 // 1 "मुत्त" इत्यपि / 2 "बीयकसायविहूणा देसअपज्जत्तसयनबग्गं तु। मुत्तण........इत्यपि / 3 "नवमहियं" इत्यपि / 4 "मुत्त" इत्यपि / 5 "मुत्तण" इत्यपि। 6 “नपुंसचउ०" इत्यपि। 7 पणुवीससनराओ / मुत्त ण" इत्यपि / 8 "मुत्तु" इत्यपि / / "इगि” इत्यपि।