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________________ // अहम् // // बन्धस्वामित्वाख्यस्तृतीयः कर्मग्रन्थः // . Raigan नमिऊण वद्धमाणं, गइयाईठाणदेसयं सिद्धं / गइयाइएसु वोच्छं, बंधस्सामित्तमोघेणं // 1 // गइ 4 इंदिए 5 य काए 6, जोए 15 वेए 3 कसाय 4 नाणे 8 य / संजम 17 दंसण 4 लेसा 6, भव 2 सम्मे 3 सणि 2 आहारे // 2 // गुणठाणा सुरनिरए, चउ पण तिरिएसु चउदस नरेसु। जीवट्ठाणा तिरिए, चउदस सेसेसु "दुग दुगं जाण // 3 // निरयतिगं मिच्छत्तं; नपुस 'इगविगलजाइअ.यावं / छेवट्ठ थावरचऊ, हुंडं चिय मिच्छदिद्विम्मि // 4 // थीणतिगित्थी अण तिरितिग "कुविहगई य नीयमुज्जोयं / 'दूभगतिग पणुवीसा, मज्झिमसंठाणसंघयणा // 5 // थावरचउ जाई चउ, विउवाहारदुग सुरनिरतिगाणि / आयवजुयाऽऽहि ऊणं, एगहियसयं नरयवंधे // 6 // तित्थोणं सय मिच्छा, साणा नपुहुंड छेयमिच्छोणं / मीसा नराउपणुवीसोणं सम्मा नराउतित्थजुयं // 7 // पंकाइसु तित्थोणं, नराउहीणं सयं तु सत्तमिए / मणुदुगउच्च हि विणा, मिच्छा बंधंति "छण्णउइं // 8 // हुंडाईचउरहियं, साणा तिरियाउणा य "इगनउई। इगुणपणुवीसरहिया, सनरदुगुच्चा सयरि मीसे // 9 // तित्थाहारदुगुणा, तिरिया बंधंति सव्वपयडीओ। पजत्ता तह मिच्छा, "साणा उण सोलसविहीणा // 10 // १“गइयाइट्रा०" इत्यपि। 2 “बुच्छं" इत्यपि। 3 "तिरिये चउद्दस'' इत्यपि / 4 "जाण दुर्ग" इत्यपि / 5 "इगि" इत्यपि / 6 “सेव?" इत्यपि / 7 “कुविहगगई" इत्यपि / ८"दुभगतिगंग इत्यादि। "छेव०" इत्यपि / 10 "छन्नई" इत्यपि / 11 "इगनउई" इत्यपि / 12 “सासा उण सोलसविहणा" इत्यपि।
SR No.004404
Book TitleKarmgranth tatha Sukshmarth Vicharsar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeershekharvijay
PublisherBharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti
Publication Year1974
Total Pages716
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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