________________ 10 ] कर्मविपाकाख्यः प्रथमः कर्मग्रन्थः 'तित्तगकडुयकसाया, अंबिलमहरा 'रसावि पंच भवे / तेवि हु जियदेहाणं, रसनामुदएण खजंता // 116 / / गुरुलहुमिउकढिणावि य. निद्धा लुक्खा य होंति सीउण्हा। जियदेहाणं फासा, उदएणं फासनामस्स // 117 // गुरु न होइ देहं, न य लहुयं होइ सव्वजीवाणं / होइ हु अगुरुयलहुयं, अगुरुलहुयनामउदएणं // 118 // अंगावययो पडिजिब्भिया 'इ जो अप्पणो उवग्घायं / / कुणइ हु देहमि ठिओ, सो उवधायस्स उ विवागो // 119 // तयविसदंतविसाई, अंगावयवो 'य जो उ अन्नेसिं / जीवाण कुणइ घायं, सो परघायस्स उ विवागो // 120 // नारयतिरियनरामरभवेसु जंतस्स अंतरगईए / अणुपुव्वीए उदओ, सा चउहा 'सुणसु जह होइ / / 121 // नरयाउयस्स उदए, नरए वक्केण गच्छमाणस्स / नरयाणुपुव्वियाए, "तहि उदओ अन्नहिं नस्थि // 122 // एवं तिरिमणुदेवे, तेसुवि वक्केण गच्छमाणस्स / तेसिमणुपुब्बियाणं, तहिं उदओ अन्नहिं नथि // 123 // जस्सुदएणं जीवे, निष्फत्ती होइ आणपाणणं / तं 'ऊसासं नामं, तस्स विवागो सरीरम्मि // 124 // जस्सुदएणं जीवे, होइ सरीरं तु ताविलं इत्थ / / सो आयवे विवागो, जह रविबिंबे तहा जाण // 125 // / "न भवइ तेयसरीरे, जेण उ तेयस्स उसिणफासस्स / होइ हु उदओ नियमा, तह लोहियवण्णनामस्स // 126 / / जस्सुदएणं जीवो, अणुसिणदेहेण कुणइ उज्जोयं / तं उज्जोयं नामं, जाणसु खजोयमाईणं // 127 // जस्सुदएणं जीवो, वर''वसभगईऍ गच्छइ गईए / १२सा सुहया विहगगई, हंसाईणं भवे सा उ // 128 // 1 "तित्तकडुया कसाया” इत्यपि पाठः / 2 "रसा " इति / 3 "पंचविहा” इति / 4 "०य जो अत्तणो उ उबघायं" इति वा / 5 “उ” इति वा / ६"सुणह' इति 7 . "उदओ तहि" इति वा / / , "उस्सासं" इति / 10 “किं नवि तेयसरीरे: भण्णइ तेयस्स" इति पाठः “किन्न हु" इति वा। 11 "वसह" इति वा / 12 “सा य सुहा" इति /