________________ कर्मविपाकाख्यः प्रथमः कर्मग्रन्थः [ . . तेसिं जं संबंध, 'अवरोप्परपुग्गलाणमिह कुणइ / तं जउसरिसं जाणसु, आहारगबंधणं पढमं // 103 / / एवाहारगतेयग, आहारगकम्मबंधणं तह य / आहारतेयकम्मगबंधणनामं पि एमेव // 104 // एवं तेयगतेयग, तेयग 'कम्मे य बंधणं तह य / कम्मइगं कम्मइगं, बंधण नाम पि पनरसमं // 105 // संघायनाम महुणा, संघायइ जेण तेण संवायं / ओरालियसंघायं, वेउब्विय जाव 'कम्मइगं // 106 // ओरालाई जे देहपुग्गला होति जंमि ठाणंमि / ते ठंति तंमि ठाणे, संघायण कम्मणो उदए // 107 // वारिसहनारायं, "रिसहं नारायमद्धनारायं / कीलिय तह छेवढ, तेति सरूवं इमं होइ // 108 // रिसहो य होइ पट्टो, वज्ज पुण कीलिया मुणेयव्वा / उभओ मक्कडधं, नारायं तं वियाणाहि // 10 // अस्सुदएणं जीवे, संघयणं होइ वञ्जरिसहं तु / तं वञ्जरिसहनामं सेसावि हु एव संघयणा // 110 // समचउरंसे नग्गोहमंडलं साइवामणे खुज्जे / हुंडे वि य संठाणे, तेसि सरूवं इमं होइ // 111 // तुल्लं वित्थडबहुलं, उस्सेहबहुं च मडह कोट्टच / हिडिल्लकायमडह, सव्वत्थासंठियं हुंडं // 112 // . जस्सुदएणं जीवे, चउरंसं नाम होइ संठाणं / तं चउरंसं नामं, सेसावि हु एव संठाणा // 113 // किण्हा नीला लोहिय, हालिद्दा तह य हुँति "सुकिलया। जियदेहाणं वण्णा, उदएणं वण्णनामस्स // 114 // गंधेण सुरभिगंध, अहवा गंधेण दुरभिगंधं तु / होइ जिया'णं देहं, उदएणं गंधनामस्स // 11 // 1. "अवरुप्परपोग्गलाण' इत्यपि / 2 “कम्मयगबंधणं” इत्यपि। 3 “कम्मइयं कम्मइयं” इत्यपि / 5" नामं तु पन्नरसं' इति / 5 "अहुणा" इत्यपि / 6 "कम्मइयं" इत्यपि / 7-8 “हुंति" | "०कम्मुणो" इत्यपि / 10 “पढमं बीयं च रिसहनारायं / नारायमद्धनारायकीलिया तह य छेवट्ठ // " इति पाठः / 11 “अ” इति वा / 12 “मक्कडबंधोः' इति / / 13 "संठाणा जीवाणं छ मुणेयव्वा " इत्यपि / 14 "कुटुं" इति बा / 15 "सुक्का य" इति / 16 "°ण सरीरं" इति /