________________ कर्मविपाकाख्यः प्रथमः कर्मग्रन्थः केवलनाणवलद्धे, जीवाइपयत्थ सद्दहे जेणं / तं संमत्तं कम्म, सिवसुहसंपत्तिपरिणामं // 37 // राग नवि जिणधम्मे, 'नवि दोसं जाइ जस्स उदएणं / . सो मीसस्स. विवागो, अंतमुहुत्तं भवे कालं // 38 // 'जिणधम्ममि पओसं, वहइ य हियएण जस्स उदएणं / " तं मिच्छत्तं कम्म, संकिट्ठो तस्स उ विवागो।।३६॥ जपि य चरित्तमोहं, "तं पि ह दविहं समासओ होइ। सोलस जाण कसाया, नव भेया नोकसायाणं // 40 // कोहो माणो माया, लोभो चउरो वि हुँति चउभेया। अणअप्पचक्खाणा, पञ्चक्खाणा य संजलणा // 41 // कोहो माणो माया लोभो पढमा 'अणंतवधी उ / एयाणुदए जीवो, इह संमत्तं न पावेइ // 42 // जं परिणामो किट्ठो मिच्छाओ जाव सासणो ताव / संमामिच्छाईसु', एसिं उदओ 'अओ नत्थि // 43 // कोहो. माणो माया, लोभो बीया अपञ्चखाणा उ / एयाणदए जीवो, विग्याविरई . न पावेइ // 44 // एसिं जाण विवागो, मिच्छाओ जाव अविरओ ताव / / परओ देसजयाइसु, नत्थ विवागो चउण्हंपि // 45 // कोहो माणो माया, लोभो तइया उ पञ्चखाणा उ। . एयाणुदए जीवो, पावेइ न सव्वविरई तु // 46 // एसि 'जाण विवागो, मिच्छाओ जाव विरयविरओ"उ। . . परओ पमत्तमाइसु, नथि विवागो चउण्डंपि // 47 // कोहो माणो माया, लोभो चरिमा उ हुँति संजलणा।। एयाणदए जीवो, न लहइ अहखायचारितं // 4 // एसि "जाण विवागो, मिच्छाओ जाव वायरो तिण्डं / लोभस्स जाव सुहुमो, होइ विवागो न परओ "उ // 49 // , 1 "न य” इति / 2 "हवई" इति / 3 "जिणधम्मस्स पओसं वहई उदएण जस्स कम्मस्स"। 4 "तंपि समासेण होइ दुविहं तु।" इत्यपि / “तं पि समासेण दुविह मणियं तु / " इत्यपि / 5 "अणंतवंधीउ" इत्यपि / 6 “जओ" इति / 7.9.11 "जेण" इति / 8 "सब्वविरई उ" इति / 10/12 "य" इति। .