________________ कर्मविपाकाख्यः प्रथमः कर्मग्रन्थः .. थीणद्धी पुण दिणचिंतियस्स अत्थस्स साहणी पायं / सा संकिलिट्ठकम्मस्स उदयओ होइ नियमेणं // 24 // निद्दापणगं एयं, चक्खू आवरइ चक्खुआवरणं / सेसिदियआवरणं, होइ अचखुस्स आवरणं // 25 // सामन्नुवओगं जं, वरेइ ते ओहिंदसणावरणं / केवलसामन्नं जं, वरेइ तं केवलस्स भवे // 26 // भणियं दसणवरणं, तइयं कम्मं तु होइ वेयणियं / तं असिघारासरिसं, जह होइ तहा निसामेह // 27 // महुलित्तनिसियकरवालधारजीहाइ 'जारिसं लिहणं / तारिसयं वेयणियं, सुहदुहउप्पायगं मुणह // 28 // महुआसायणसरिसो, सायावेयस्स होइ हु विवागो / जं असिणा नहि छिजर, सो उ विवागो असायस्स // 29 // ..'एयं सुहदुक्खकर पउगइमावनयाण जीवाणं / सामन्नेणं भणिमो, सुहदुक्खं दुसु दुसु गईसु // 30 // देवेसुः य मणुएसु य, तत्थ विसिट् सु कामभोगेसु / जं 'उवभुजइ जीवो, सो उ विवागो "उ सायस्स // 31 // 'नरएसु य तिरिएसु य, तेसु य दुक्खाई गरूवाई / जं 'उवभुजह जीवो, सो उ विवागा असायस्स // 32 // एयमिह वेयणीयं, चउत्थकम्मं तु होइ मोहणियं / / तं मजपाणसरिसे, जह होइ तहा निसामेह 33 // जह मजपाणमूढो, लोए पुरिसो परब्यसो होइ / सह मोहेणवि मूढो, जीवोवि परव्यसो होइ // 34 // मोहेइ मोहणीयं, तं पि समारेण भण्णए दुविहं / दंसणमोहं पढम, चरित्तमोहं भवे चीयं // 35 // दंसणमोहं तिविहं, सम्म मीसं च तह य मिच्छत्तं / / * सुद्धं अद्धक्सुिद्ध, अविसुद्धं तं जहाकमसो // 36 // १“जारिसयलिहणे" इति "जारिसं लेहणं" इत्यपि दृश्यते / 2 “एवं" इत्यपि / 3.6 "ते भुजह" इति "तहिँ भुजई"इत्यपि / 4.7 "" इति।५"निरिएसु यनरएसु य तेसिं"1 8 “होइ दुविहं तु।" इति /