________________ कर्मविपाकाख्यः प्रथमः कर्मग्रन्थः जह निम्मलावि चक्खू, पडेण केणावि छाइया संती / मंदं मंदतरागं, पिच्छइ सा निम्मला जइवि // 11 // तह महसुयणाणाणं, 'ओहीमणकेवलाण आवरणं / जीवं निम्मलरूवं, आवरद इमेहिं भेलहिं // 12 // अट्ठावीसइभेयं, मइनाणं इत्थ वणियं समए / .. तं आवरेइ ज तं, मइआवरणं हवइ पढमं // 13 // 'चोद्दसमेएसु गर्य, सुयनाणं इत्थ वणियं सम्मए / तस्सावरणं जं पुण, सुयआवरणं हवा बीयं // 14 // अणुगामिवडमाणयमेयाइसु वण्णिओ इहं ओही / तं आवरेइ तं अवहीओवरणयं जाण // 15 // रिउमइविउलम ईहिं, मणपजवनाणवण्णणं समए / तं आवरिय जेणं, 'तं पि हु मणपजवावरणं // 16 // लोयालोयगएसु, मावेसु जं गयं महाविमलं / तं आवरियं जेणं, केवलआवरणयं "तंपि // 17 // "एवं पंचविअप्पं, नाणावरणं समासओ भणियः।। बीयं दंसणवरणं, नवभेयं मण्णए सुणह // 18 // दंसणसीले जीवे, दंसणघायं करेइ जं कम्मं / तं पडिहारसमाणं, सणवरणं भवे बीयं // 19 // जह रनो पडिहारो, अणभिप्पेयरस सो उ लोगस्स / रण्णो तहि दरिसावं, न देइ दलृ पि कामस्स // 20 // जह गया तह जीवो, पडिहारसमं तु दंसणावरणं / . तेणिह विबंधएणं, न पिच्छए सो 'घडाईयं // 21 // निद्दापणगं तत्थ उ, घउभेया दंसणस्स आवरणे / "सुहपडिवोहो निदा, बीया पुण "निद्दनिदा य // 22 // सा दुक्खबोहणीया, पयला पुण जा ठियस्स उद्धाइ / / पयलापयल चउत्थी, तीए उदओ उ चंकमणे // 23 // , 1 "भोहिमणोके०" इति / 2 "चउदस" इति 3 "ज पि य, भोहीभावरणयं तंपि" "जं पुण ओ०". इति वा पाठः / 4 "मईहिय" इति 5 "भियं समए।" इति / 6 “तं पुण" / 7 "तं तु"। 8 "एयं"। है "पडाईयं / 10 "सुहपरिबोहा" 11 / “निहनिहन्ति"।