________________ // श्री आत्मानन्द-कमल-दान-प्रेमसूरिसद्गुरुभ्यो नमः // // अहंम् / / श्वेताम्बराग्रण्यश्रीमद्गर्गमहर्षिविरचितः कर्मविपाकाख्यः प्रथम: कर्मग्रन्थ : ववगयकम्मकलंक, . वीरं नमिऊण कम्मगइकुसलं / वोच्छं कम्मविवागं, गुरूवइटें समासेणं // 1 // कीरइ जओ जिएणं, मिच्छचाईचउगइगएणं / नेणिह . भण्णइ कम्म, अणाइयं तं पवाहेणं // 2 // तस्स उ चउरो भेया, पगईमाईउ हुँति नायव्वा / मोयगदिद्रुतेणं पगईभेओ इमो 'होइ // 3 // मुलपयडीउ अट्ठ उ, उचरपयडीण अट्ठवमसयं / तासि सभाषभेया, हुति हु भेया इमे सुणह // 4 // पढमं नाणावरणं, बीयं 'पुण दंसणस्स आवरणं / नइयं च वेरणीयं, तहा चउत्थं च मोहणियं // 5 // आऊ नाम गोयं, *अट्ठमयं अंतराइयं होइ / मुलपयडीउ एया, उत्तरपयडीउ कित्तेमि // 6 // पंचविहना गवरणं, नव भेया दंसणस्स दो वेए / अट्ठावीसं मोहे, चत्तारि *य आउए हुति // 7 // नामे तिउत्तरसयं, दो गोए अंतराइए पंच / / एएसि मेयाणं, “होइ विवागो इमो सुणह // 8 // पडपडिहारसिमजाहडिचित्तकुलालभंडगारीणं / जह एएसि भावा, 'कम्माण वि जाण तह . चेव // 9 // सरउग्गयससिनिम्मलयरस्स जीवस्स छायणं जमिह / नाणावरणं कम्मं, पडोवमं होइ एवं तु // 10 // १"सुणह" इत्यपि पाठः / 2 "पुण होइ दंसणावरणं" / 3 "भाउ य नाम"। *"चरिमं पुण मंत०॥ १“उ' | 5 "हुति हु भेया इमे सुणह" / 6 "कम्माणं तह मुणेयव्वा" इत्यपि / 7 "मावा" इति /