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________________ कर्मविपाकाख्यः प्रथमः कर्मग्रन्थः नव नोकसाय भणिमो, वेया तिन्नेव हासछक्क / इत्थीपुरिसनपुसग, तेसिं सरूवं इमं होई॥५०॥ पुरिसं पइ अहिलासो, उदएणं होइ जस्स कम्मस्स / सो फुफुमदाहसमो, इत्थीवेयस्स उ विवागो // 52 // इत्थीए पुण उवरिं, 'जस्सिह उदएण रागमुप्पजे / सो तणदाहसमाणो, होइ विवागो 'पुरिसवेए // 52 // इत्थीपुरिसाणुवरिं, 'जस्सिह उदएण "रागमुप्पज्जे / नगरमहादाहसमो, 'सो उ विवागो "अपुमवेए // 53 // 'तिण्ह वि होड विवागो, मिच्छाओ जाव बायरो ताव / हासरईअरइभयं, सोगदुगुच्छा 'उ अह भणिमो // 54 // सनिमित्तऽनिमित्तं वा, जं हासं होइ ''इत्थ जीवस्स / सो हासमोहणीयस्स होइ कम्मस्स उ विवागो // 55 // सच्चित्ताचित्तेसु, य बाहिरदव्वेसु जस्स उदएणं / होइ रई रइमोहे, ''सो उ विवागो वियाणाहि // 56 // सञ्चित्ताचित्तेसु य, बाहिरदव्वेसु जस्स उदएणं / अरई होइ हु जीवे सो उ विवागो अरइमोहे // 57 / / भयवज्जियंमि जीवे, जस्सिह उदएण हुंति कम्मस्स / सत्तवि भयठाणाई, भयमोहे सो विवागो उ // 58 / / सोगरहियंमि जीवे, जस्सिह उदएण होइ कम्मस्स / अक्कंदणाइसोगो, तं जाणह सोगमोहणियं // 56 // दुग्गंथमलिणगेसु य, "अभितरबाहिरेसु दव्वेसु / जेण विलीयं जीवे उप्पजइ सा' दुगुछाउ // 6 // छण्हवि "होइ विवागो, मिच्छाओ जा अपुव्वकरणस्स / चरमसमउ ति परओ, नत्थि विवागो''उ छण्हं पि // 61 // भणिओ मोहविवागो, आउयकम्मं "तु पंचमं भणिमो / 2" होइ चउपयारं, नरतिरिमणुदेवभेएहिं // 2 // १-४"जस्सुदएणं तु" इति। 2.5 “राग उप्पजे" इति / 3 “उ पुमवेए" इति / 6 "हो" इति 'जाण" इति वा 7- "नपुंसस्स" इति। 8 “तिण्हवि जाण विवागो” इति / 1-16-18 "य" इति। 10 "एत्थ" इति / 11 "तं तु विवागं वियाणाहि" "सो उ विवागो मुणेयव्वो" इति / 12 “जस्स उ" इति / 13 "जाणसु" इति। 14 "सभितर०" इति / 15 "दुगंछा" इति / 17 “जाण" इति। 16 “च"। 20 "तंपि हु चउप्पयारं" इति।
SR No.004404
Book TitleKarmgranth tatha Sukshmarth Vicharsar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeershekharvijay
PublisherBharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti
Publication Year1974
Total Pages716
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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