________________ गुणस्थानेषु नाम्नो बन्धोदयसत्तास्थानभङ्गाः [69 दोसय अट्ठासीया मणु तह तिरियाण छच्च विगलाणं / पंचसया बासीया 582 उदए छन्वीसि सव्वे वि // 352 / / (452) [406] एगो य अट्ठभंगा नारयदेवाण उदइ उणतीसे / तीसुदइ तिरियमणुसुर तेवीससया उ बारहिया // 353|| (453) [410] उज्जोयतीसि अट्ठ उ कारसबावन्न ते य सरतीसे / देव तह तिरिय भंगा ते चिय मणयाण तिरियसमा // 354H / (454) [411] उज्जोयतीसउदओ मिच्छदिद्विस्स न उण साणस्स / उज्जोयएगतीसा सासणभावम्मि कह एवं // 35 // (455) [412] जं मिच्छदिद्विभणियं 'सासणुतीसम्मि तस्स पक्खेवा / अपजत्ति संभवो तहि साणं भासाइपज्जत्ते // 356 / / (456) [413] इगतीसा तिरिउदए सासणभावम्मिकार बावण्णा / चउसहससत्तनवई 4097 सासणगुणसव्व पिंडेण ||357 / / (457) [414] संवेहो य इयाणिं सासण भावम्मि चंधि अडवीसे / दो उदया अंतिल्ला तिगसंत न तिरिय बाणउई // 358 / / (458) [415] मणुतीसुदए सत्ता बाणवई जेण कोइ सेढोओ / चुयहारगकम्मंसी सासणभावम्मि गच्छेजा // 359 / / (459) [416] अडसी तिरिमणुयाणं नियनियउदएसु वट्टमाणाणं / अडवीसबंधगाणं तिगठाणा संत संवेहो // 360 // (460) [417] उव्वलियसेसहारगउवसमसम्म लहित्तु जेसि मयं / . तत्तो सासणभावं बाणवई तिरिय न विरोहो // 361 // (461) [418] कह भन्नइजो गंठिं ता पढमो गंठि समईअओ भवे बीयं / / अनियट्टीकरणं पुण सम्मत्तपुरक्खडे जीवे // (462) "तस्स य अंते उवसमसम्मं तिगपुज कुणइ मिच्छसि / (463) वेयगसम्मद्दिट्ठी अणंतरं सव्वविरइ लहिऊण / तत्तो विसुज्झमाणो आहारचऊ समज्जेइ / / (464) 'अडवीससंतकम्मी मोहे बाणवइ नाम . संतंसी / १"सासुणती०" इति L. D. प्रतौ / 2 "बावन्ना” इति L. D. प्रतौ / 3 “एषा गाथा-ऽपूर्णा लेखकदोषात् L.D. प्रतावस्तीति सम्भाव्यते / एतद्गाथोत्तरार्धम्-"तव्वडिओ पुण गच्छद सम्मे मीसाइ . मिच्छे का / / (463)" इत्येवंविधं स्यादन्यथा बेत्यपि संभावना क्रियते।