________________ ( 56 सप्ततिकाभिधे षष्ठे कर्मग्रन्थे 'मीसाइनियहीओ छच्चउ पण नव य सन्तकम्मंसा / चउबंधतिगे चउपणनवंस दुसु जुयल छस्संता॥सू.-४०॥ (352) [322] उवसंते चउपणनव खीणे चउरुदय छच्च चउसंता / वेयणियाउयगोए विभज मोहं परं वोच्छं ।।मू.-४१।। (353) [323] नाणंतरायगाहातिगस्स विवरणं पुव्वुत्तं // दुसु जुयले छस्संता एएण पएण सूइया खवगा / तेसि विसेसं विवरे किंची गाहानुसारेण ||283 / / (354) [324] अच्चंतविसुद्धत्ता निदाउदओ न खवगसेढीए / अप्पुव्वाई चउबंधगेसु चउरोदओ तेण / / 284 // (3.5) [325] अप्पुव्वपढमभागे छक्कं उवरिं तु चउरबंधुदए / जा सुहुमो सत्ताए बायरसंखंस नवसंता // 285 // (356) [326] ___ थीणतिगखविय उवरि छस्संता जाव सुहुमरागंतो / घंधोवरमे चउरुदय खीणि संता उ छच्चउरो / / 286 // (357) [327] गुणस्थानकेषु वेदनीयगोत्रयोर्बन्धस्थानादिमङ्गाः चउ छस्सु दोन्नि सत्तसु एगे चउ गुणिसु वेयणियभंगा।' गोए पणचउ दो तिसु एगट्ठसु दोन्नि एगम्मि ।।स.-०॥ (358) [328] छसु आइमेसु पढमा चउरो बंधे य अंतिमा दो दो / वेयणिए इय सत्तसु बंधोवरमे चउर एगे // 287 / / (359) [326] बंधोवरमि अजोगे सायासायाण उदउ को कस्स / जाव दुचरिमो दो दो 'चरिमे एक्केक्क संताओ // 288 / / (360) [330] सायं बंधं तह उदय साय तह सायबंधि दुक्खुदओ / दो दो संता दोसु वि इय भंगा सत्तसु गुणेसु // 289 / / (361) [331] पदमम्मि पढम पंच उ बीए पढमं विवज्जिया चउरो / उच्चं बंधं नीचुच्च उदय दो संत भंगदुगं // 260 / (362 [332] एगेसि मयं नीयं वयगहणे नेव होइ उदयम्मि / नीया वि हु जइजाई तह वि य ते उच्च वेयंति // 291 / / (363) [333] १“मिस्साइ०' इति L. D. प्रतौ / 2 "अंतरिउ” इति L. D. प्रतौ / 3 'चरमे'' इति L. D. प्रतौ।