________________ जीवस्थानेषु नाम्नस्तथा गुणस्थानकेषु ज्ञानावरणान्तरायदर्शनावरणीयानां बन्धोदयसत्तास्थानभङ्गाः [55 न य विवरियं पुढो इह भंगा अडवीसि उदयमंभविया / चुन्निदुगे वि हु लहुए अहवा न हु अवगया सम्म / / (346) तेण न भंगपमाणं अडवीसम्मि चउउदयसंभवियं / तिरिमणुसामन्नाणं इयरुदएसु च पुण एए // (347) पणतीसमणुविउविसु छप्पन्नं तह तिरिक्खभंगा / तीसिगतीसे उदए तिरिमणुसामन्न जे भंगा / (348) पणतीसं छप्पना चालीससया उ अहिय बत्तीसा / 4032 भंगाणं तु. पमाणं विउव्विदुगउदयअंतेसु // (346) अट्ठावीसबंधजंतझ्यं'ठवणा ठाणा | 21 | 25 26 27 28 | 26 | 30 / 31 | मंगा | तिग्यि० * | * | 0 | 0 | 0 | 0 17281152 (2880) | मणुवे. उम्विय० तिरिवेः। * | 8 | | | 16 | 16 | 8 || (56) | तिरिवेउठिवय० सामन्नमणुयतिरियभंगा सम्यग् न ज्ञा(यन्)ते चउसु उदएसु // जीवस्थानेषु नाम समाप्तम् // चउपढमट्ठाणाई 4 तेरसहीणाई 4 नाव पत्तेयं / [318] एवं उवरयवंये सन्नीपज्जत्तसंवेहो // 28 // पंचासं सयमेगं चउवीसणुवीस तहय सत्तरस / दुन्नि सया य दहोत्तर सन्नीपज्जत्तठाणाणि // 28 // [316] भणियाउ जीवठागे बंधोदयसंतविवरणं किंचि / गुणठाणगेसु तं चिय भणामि किंचि समासेणं / / 282 / / (350) [320] गुणस्थानकेषु ज्ञानावरणा-ऽन्तराययोर्दर्शनावरणस्य बन्धोदयसत्तास्थानानां मङ्गाःनाणंतरायतिविहमवि दससु दो 'होति दोसु ठाणेसु / "मिच्छासाणे वोए नव चउ पण नव य संतंसा ॥मू.-३६॥ (351) [321] . 1 इदं यन्त्रं L. D. प्रतावस्ति, J. प्रतिप्रेसकोप्यां नास्ति / 2 “जीवठाणेसु” इति J. प्रतिप्रेसकोप्याम् / 3 "तेच्चिय" इति J. प्रतिप्रसकोप्याम। 4 "हुंति" इति L. D. प्रतौ / 5 "मिच्छासाणा" इति L. D. प्रतौ।