________________ 54 सप्ततिकाभिधे षष्ठे कर्मग्रन्थे 'ठवणा अट्र बंधठाणा. अट्ट उदयट्टाणा सत्ताठाणा दस सन्निम्मि बंधठाणा बंधभंगा उदय सत्ता भंगा ठाणा 257656, 30 6 4123/ 11 6248 7671 44 | उदयठाणा | 21 | 25 26 27 28 29 30 31 | 23 4 सन्नितिरिभंगा 8 . 288 0 576 1952) 728/1652/ 25 / 25 | मणुयभंगा | . 28 * 576 576 1152| | 26 / 16 विउव्यितिरिय. . . | 8 | 16 | 16 8 8 | आहारकभंगा * | 1 || 1 | 22 | 1 | 0 | 266248 देवाण भंगा | 8 8 | * | 8 | 16 | 16 | 8 | 6 | 30 4641 मारकाण भंगा 1 1 0 1 1 1 0 . विउठिवमणु,, | 08.8 9 / 10 सत्ताठाणा 5 2 5 2 | 4 | 4 | 4 4 (सव्वे- 13745 42H / 200) सतित्थयरसंता 63 सामन्न तरियमणुयचउसु उदएसु भंगा चुन्नीएन भणियत्ति न लिहिया देवाण भंगा 30 4641 7667 - 42 अट्ठावीसं बंधं बंधहि तिरिमणुय निययउदएहि / सुरनिरगइपाउग्गं विसुद्ध तह किस्समाणा उ / (343) करणि अपजत्ता उण आइमचउउदय वट्टमाणा उ / ' सुद्धिगया अडवीसं इयरा उणतीस बंधंति // (344) इह आइम चउउदया इगवीसछ्वीस तह य अडवीसा / उणतीसा विय कमसो वियप्प जे जस्स संभविया / / (345) 1 इदं यन्त्रं L. D. प्रतावस्ति, J. प्रतिप्रसकोप्यां नास्ति / अत्र L. D. प्रतौ "उदयह" इति पाठो दृश्यते किन्तु सम्यग् न ज्ञायते इति कृत्वा-ऽस्मामि रेकत्रिंशद्बन्धसत्कमेकं त्रिंशत्प्रकृत्यात्मकमुदयस्थानमाश्रित्य मङ्गाः 144 दशिता इति ज्ञेयम् / यदि केषाञ्चिदाचार्याणामभिप्रायेण पुनरुत्तरवैक्रियमनु- / ध्या आहारकमनुष्याश्चापि प्रकृतबन्धकतया विवक्ष्यन्ते तदेहैकोनत्रिंशदुदयस्थानमप्यधिकतया लभ्येत, तथे कोनत्रिंशदुदयस्थानसत्कमङ्गद्वयं त्रिंशदुदयस्थानसम्बन्धिमङ्गद्विकमिति चतुर्णा भङ्गानामधिकतया लाभात्सर्वं उदयभङ्गाः 148 स्युः।