________________ [53 जीवस्थानेषु नाम्नो बन्धोदयसत्तास्थानभङ्गाः - देवगईपाउपगं उणतीसं बंधमाणाणं // (338) 'सत्ता सव्वेसु दो दो 93,86 // ठवणा- 21 25 26 27 28 29 30 . एवं तीसे बंधे नवर सुरा मणुयजोग बंधति / छसु निएसु उदएसु बारसठाणा. संतस्स 12 // 278 // (336) [316] ४वणा / उदयठाणा | 21 | 25 27 | 28 | 26 | 30 | सत्ताठाणा बंधम्मि एगतीसे उदओ 'तीसाइ तिणवई 'संता / तह एगबंधि उदओ सत्ताठाणाई अट्ठव // 279 // (340) [317] छायालं सयमेगं छव्वीसुणवीस तह य नव ठाणा / अब्बंधि अट्ट सन्निसु दो सय अडुत्तरा सव्वे 208 // (341) "ठवणा | बंधठाणा | 23 | 25 26 28 | 26 | 30 | उदयठाणा 8 | 8 | 8 | 8 | 88 | 1 | 1 | 1 | सत्ताठाणा| 26 | 30 30 | 19 30 39 1 8 8 (208/ छव्वीस केवलीणं तिगतिग सत्ता नवट उदएसु / तित्था-ऽतित्थगराणं दो दो सेसेसु सव्वेसु // (342) मतान्तरेण सिद्धान्ता-ऽभिप्रायेण पुनः सम्यग्दृष्टीनां पल्योपमाऽसङ्ख्येयभागादिन्यूनस्थितेष्वपि मवनपत्यादिदेवेषूत्पादोऽस्ति, ततस्तत्रा-ऽऽहारकसप्तकजिननामोभयसत्कर्मा मनुष्यउत्पद्या-ऽऽहारकसप्तके - नुद्वलिते सत्येव पुनर्मनुष्यो भवति, तदा तस्य नाम्न एकोनत्रिंशद्वन्धे एकविंशति-षड्विंशत्युदयस्थानद्वये त्रिनवतिसत्कर्मता लभ्यते, एतदभिप्रायेणेव सप्ततिकामूल-चूर्णि वृत्तिषु तथा-ऽत्रैव ग्रन्थे प्राग् // 206 // दयस्थानद्वये (250) तमगाथायामनन्तरं / / 276 / / तमगाथायाञ्च नाम्न एकोनत्रिंशबन्धस्थाने सप्तोदयस्थानेषु त्रिनवति सत्कर्मता प्रतिपादितेति सम्भाव्यते / L. D. प्रतौ पुनरत्राऽपि-त्रिनवतिसत्कर्मता एकविंशति षड्विंशत्युदयस्थानद्वये निषिद्धा / 1.2.5 इदं यन्त्रं L. D. प्रतौ। 3 "तीसन्ह" इति L. D. प्रतौ। 4 "संत" इति L. D. प्रतावस्ति, J. प्रतिप्रसकोप्यां नास्ति /