________________ 42 ] सप्ततिकाभिधे षष्ठे कर्मग्रन्थे बादरपज बे.पज्ज |ते.पज्ज च.पज्ज असं-पज्ज. वा.पज्ज बे.पज्ज ते.पज्ज च.पज्ज असं.पज्ज 22 / 22 / 22 / 22 / / 22 / 21 / 21 / 21 / 21 . 21 | | | 8 8 24 , 8 8 8 8 / 24 16 चउवीसा-८३२ उदयविगप्पा। चउवीसिया वा | उदए-ऽटुगा (3232/32/3232 96.96/2/3232.32 3216/32,32/32/3266 पए-ष्ट्रगाः 363636/3636/36/36/36/363636/36/36/32/32/32/32/32/ पयविंदा EFFEREFERE इगि विगल अपज्जत्ता सुहुमो पज्जो य छच्च जियठाणा / तह विगल वारपज्जा उदइ नपुसेण ए दस उ // 235 // (294) [271] * अस्सन्निसन्निपज्जा तह य अपज्जा य चउर जियठाणा | * तिगवेयपरावत्तो उदए आसज्ज चउसुपि // 236 / / (265) [272] . तेरससु जीवठाणेसु संतढाणसंखमाहइगवीसबंधगाणं सासणभावम्मि पंचजियठाणा / उदएसु पत्तेयं एगा अडवीस संतम्मि // 237 // (296) [273] बावीसबंधतेरस बंधे बंधे य तिगतिगं उदया / उदएसु पत्तेयं तिगतिगसंता उ पुच्चुत्ता // 238 / / (267) [274] 8 इह ग्रन्थे लब्ध्यपर्याप्ताना,संश्यसंक्षिपञ्चेन्द्रियाणामपि वेदत्रयमङ्गीकृत्य यत्प्ररूपणं कृतं तत्त सर्वस्या-ऽपि लब्ध्यपर्याप्तस्य नपुसकवेदित्वाच्चिन्त्यम् , यतश्चूर्णिकाररपि लब्धिपर्याप्तसंज्ञिनीव लब्धिपर्याप्तासंज्ञिन्येव वेदत्रयमङ्गीकृतम् , न पुनर्लब्ध्यपर्याप्तसंझ्यसंज्ञिनोरपि, यदुक्तम्-“एक्केक्कम्मि उदयम्मि नपुंसगवेदेणं चेव अट्ठ अट्ठ भंगा / सेसा न संभवंति ............. | असन्निपज्जत्तगस्स तिहिं वि वेदेहिं उहावेयध्वा / " इति / किञ्च सिद्धान्ताभिप्रायेण पर्याप्तोऽपर्याप्तो वा सर्वोऽप्यसंज्ञी नपुंसक एव, यदुक्तं