________________ 20] सप्ततिकामिधे षष्ठे कर्मग्रन्थे ठवणा | थिर थिर | थिर थिर अथिर (अथिर अथिग अथिर | सुम सुम असुमा असुभा सुभ, सुभ असुभ/असुभ | जस अजस जस अजस जस अजस जस अजस एसा वि ठावणा इह बायरएगिदिविगलदेवाणं / तह तीसे मणुजोगे पत्तेयं जस्स संभविया // 108 / / (143) [132] थिरसुभजसइयरेहिं बितिचउरिंदीण अट्ठ पत्तेयं / उणतीसतीसबंधे अडवीसे अट्ठ देवाणं // 109 // (144) [133] | बंधठा० - 25 28 29 30 | बेई० 1 'ठवणा तेइं० . चउ० - 1 || देव० ठवणा तीसा य मणुयजोगा उणतीसा तीस एगतीसा य / , देवाण अट्ठ अह य एक्केक्को भंगमेएसु // 110 // (145) [134] | जोग्गः | मणुः देव० / बंधो 30 | 29 | 30 | 31 भंगा थिरछक्कं - सुभखगई सप्पडिवखेहि चारिया संता / .. . गुणिया संघयणा-ऽऽगीहि भंगया सयलतिरियाणं // 111 // (146) [135] . 1 इदं यन्त्र L. D. प्रतावस्ति / 2 “संघयण तहागिईहि (भंगया] (भंगा य) सयलतिरियाणं / / 146 // " ति L. D. प्रतौ।