________________ दर्शनावरण गोत्र-वेदनीयाऽऽयुष्ककर्मणामुत्तरप्रकृतीनां बन्धोदयसत्तास्थानानि [5 नव छच्चउहा बंधे, तह 'संता पंच चउर उदयम्मि / सामण्णमिणं बीए, भंगा पुण होंति एक्कारा // 14 // (22) [16] षीयावरणे नव बंधएस चउ पंच उदय नव संता / छ च्चउबंधे चेवं, चउबंधुदए छलसा य // 0-8 // (3) [20] उवरयबंधे चउ पण, नवंस चउरुदय छच्च चउ संता। वेयणिया-ऽऽउय-गोए,विभन्न मोहं परं वोच्छं ।।सू०-६! (24) [21] नव छ च्चउ वेहबंधे, उदए चउ पंच संत नव छसु वि / चउबंधुदए "संता, 'छच्चेव य होति खवगस्स // 15 // (25) [22] बंधोवरमे चउ पंच उदय नव संत होति उवसंते / खीणे उदयचउक्कम्मि छ च्च चत्तारि संताओ / 16 // (26) [23] - बंधो || 6 | 6 | 4 | 4 | 4 | * * * * उदओ | 5 | 4 | 5 | 4 | 5 | 4 | 4 | 5 | 4 |4 | 4 | | सत्ता / EEEEE | 6 || E | 6 | 4 | ठवणा 'वेदणीयाउयगोए विभज्ज मोहं परंवोच्छं / वेदनीया-ऽऽयुर्गोत्राणामुत्तरप्रकृतीनां बंधोदयसत्तास्थानसंवेधभङ्गाः'गोयम्मि सत्त भंगा, अट्ट य भंगा भवंति वेयणिए। पण नव नव पण भंगा, आउचउक्के विकमसोउ।मू०-०। (27) [24] नीयं बंधं नीयस्स उदय नीयस्स चेव संताओ / अनिलाऽनलजीवाणं इयरेसु अणंतरुव्वदृ // 17 // [25] अनला-ऽनिलजीवाणं एगो इय एसु केसि चि // (28) / उद्वालियउच्चागोए तेउवाऊण णीयमिह संतं / इयरेसु च उव्वट्टे पज्जत्ती जा न पूरेइ // (26) 1.5-7 “सत्ता” इति L. D. प्रतौ। २:सामन्न" इति L. D. प्रतौ / 3 “हुंति" इति L. D. प्रतौ। 4 अंत्र प्राचीनकर्मस्तवकारादिभिस्त्रयोदशमङ्गाः प्रतिपाद्यन्ते / यतस्तेः क्षपकाणामपि निद्राद्विकोदयं स्वीक्रियते / दृश्यतां प्राचीनकर्मस्तवे त्रयस्त्रिंशत्तमगाथापूर्वाधं तट्टीका च ६क्षपकाणां स्त्यानचित्रिकक्षयानन्तरं षड्विधा सत्ता बोद्धव्या / 8 अयं पाठः J0 प्रतिप्रेसकोप्यां नास्ति / L. D. प्रतौ चास्ति / 6 "केनाऽपि विदुषा सप्ततिकामूलप्रकरणेऽर्थानुसन्धानार्थ प्रक्षिप्तमिदं गाथासूत्रम् , न तु मूलप्रकरणस्येदमिति / एवमप्रेऽपि ज्ञेयम् /