________________ जीवस्थान-गुणस्थानेषु मूलकर्मणां तथौघतो ज्ञानावरणोत्तरप्रकृतीनां बन्धोदयसत्तास्थानानि [ 3 केवलिठवणा बन्धो .उदओ | सत्ता | 4 | 4 | गुणस्थानकेषु मूलप्रकृतीनां बन्धोदयसत्तास्थानानिअट्ठसु एगविगप्पो, छस्सु उगुणसन्निएस दुविगप्पो। पत्तेयं पत्तेयं, बंधोदय-संतकम्माणं ॥सू०-।। (12) [10] मिस्सअपुव्वा बायर, सगबंधा छच्च बंधए सुहमो / 'उवसंताई 3 एगं, अबंधगोऽजोगि एगेगं // 8 // (13) / मिच्छासासणअविरय-देसपमत्तअपमत्तया चेव / सत्तऽट्ठबंधगा इह, उदया संता य पुण एए // 6 // (14) [12] जा सुहुमो ता अढ उ, उदए संते य होंति पयडीओ / "सत्तऽड उवसंते खीणि सत्त चत्तारि सेसेसु // 10 // (15) [13] ठवणा| गुणठाणाणि मिच्छ| सा० मि० अवि० देस० पम० अपम अपू० | अणि. सु० |उव० खीण मजो. अजो. / उदओ 88E FIREEEEEE EFF00 | 4 | 4 | सत्ता मूलपयडीसु भणिया बन्धोदयसंतठाणसविगप्पा / उत्तरपयडीसु तहा ते चिय. पयडेमि पत्तेयं // (16) उत्तरप्रकृतिषु बन्धोदयसत्तास्थानानि - पंधोदयसंतंसा, नाणावरणंतराइए पंच / बंधोवरमे वि तहा, "उदयंसा होति पंचेव ।।मू०-६।। (17) [14] * 1 "वि"इत्यपि / 2 "बादर" अनिवृत्तिः। 3 उपशान्तकषायक्षीणकषायसयोगिकेवलिनः। 4 “सत्तऽठुवसंते” इति L. D. प्रतौ। ५"उदसंता हुंति" इति।