________________ सप्ततिकाभिधे षष्ठे कर्मग्रन्थे सामन्ना 1 जीव 2 गुणा 3, पत्तेयं मूलपयडिविसओ उ / नियनियभंगेहि समं, सुत्तऽणुसाराउ तं च इमं / 5 // (7) [5] मूलप्रकृतौ सत्तास्थानानिअट्ठविह-सत्त-छब्बंधएसु अट्टेव उदय'संताई / / एगविहे तिविगप्पो, एगविगप्पो अबंधम्मि // 0-3 / / (8) [6] पढमद्धं कंठं / सत्तऽढ 1 सत्त सत्त य 2, चउरो चउरो य 3 उदयसंतंसा / एगविहबंधगे इह, तह य अवंधम्मि चउ चउरो // 6 // (9) [7] सामन्ने ठवणा उदओ 8 8 87 | 7 | 4 | 4 | जीवस्थानेषु मूलप्रकृतीनां बन्धोदयसत्तास्थानानिसत्तऽबंध अठ्ठदयसंत तेरससु जोवठाणेसु / एगम्मि पंच भंगा दो भंगा होति केवलिणो॥०-४॥ (10) [1] पढमद्धं कंठं / 'एगम्मि' सन्निट्ठाणे / / अडसत्तछेगवंधा, उदए संते य पढमतिसु अट्ठ / एगम्मि सत्त अट्ट य, तह सत्त य सत्त उदयंसा // 7 // (11) [9] सण्णिस्स ठवणा तेरससु जीवठाणेसु ठवणा जीव- सू. सू. बे. त्रि० वि० च. ट्राणा अप. प. अप.J अप. प. 'अप प० | अ. 1 "संतसा" इति वा पाठः।२ “हुंति" इत्यपि / च. | असं. असं. प. / अप. प. सं. अप. .