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________________ जीवस्थानानि, तेषु गुणस्थानानि च [3 (राम०) सन्निअपज्जत्तगस्स तिन्नि-मिच्छद्दिट्ठी सासायणो अविरयसम्मट्टिी य / सासायणस्स पुव्वुत्तो विही। अविरओ कहं ? अपरिवडियसम्मत्तो कोइ एएसु उववज्जइ ति काउं / सन्निपज्जत्तयस्स सव्वे गुणट्ठाणा, जओ सव्वेसिं गुणट्ठाणाणं भायणोत्ति 'मिच्छं सेसेसु सत्तसु वि' सुहुमअपज्जत्तपज्जत्तगस्स बायरएगिदिय-बेइंदिय-तेहंदिय-चउरिंदिय असन्निपज्ज. तगेसु एगो मिच्छत्तगुणो / सुहुमअपज्जत्तगस्स 'सासायणो कहं न होइ ? 'सासायणो जीवो जओ तेसु न उववज्जइ ति काउं // 5 // इयाणिं जोगमग्गणा, ते य पन्नरस, तं जहा-सच्चं मणं 1, मोसं मणं 2, मीसं मणं 3, असच्चमोसं मणं 4, सच्चभासा 1, असच्चभासा 2, मीसभासा 3, असच्चमोसा भासा 4, ओरालियं१. ओरालियमीसं 2, वेउव्वियं१, वेउव्वियमीसं 2, आहारगं 1, आहारगमीसं 2, कम्मगं 1, एवं जोगा 15 / ___ एत्थ पसंगागयं भासाचउक्कस्स विवरणमाह"एगा सहावसच्चा मोसा दुइया तहेव नायव्या / तइया सञ्चामोसा, अवच्चमोसा 'चउत्थी उ॥२। जणश्यसम्मयठवणा नामे रूवे पडुच सच्चे य / ववहारमाबजोगे, दसमे ओकम्मसच्चे य // 3 // जणवयसच्चं एत्थं देसियभामाएँ जत्थ जे रूढं / जह कुकणे पसिदो पयसदो पाणिप चेव // 2 / तामरसकुवल उलप उमाणं पंकसंमवम्मि समे / तासरसमेव गोवाइसम्मयं सम्मया एसा // 5 // भावरमुद्द माईहि मासकाहावणे सहस्समिणं / जंठाविज्जइ जियकप्पणाएँ तं ठागणे सच्चं / / 6 / / जत्था पक्खो पक वो अबुडिढकारी वि कुलधणाईणं / तव्वद्धणोत्ति मन्नइ, नामेणऽभिहाणसच्चं तं / / 7 / "अणुगरणट्ठा वेसं, कवडेण व दंसणाइरूवं वा / तग्गुणहीणो विरयइ भन्नइ तं रूवसच्चं ति / / 8 / / हीण हिएसु दुइएण वत्थुणा लहुय-गरुयभावेण। निच्छिज्जइ जो अत्थो, पडुच्च सच्चं तय होइ / / 6 / / गिरिगयनणाइदाहे. वि पव्वओ ज्झामिओत्ति ववहारे। भायणालणमणुदरा कन्ना नीरो मुरब्मा य / 10 / पंचन्ह वि वन्नाणं, विजंते संमवम्मि तह हे / सेया बलाहिया एत्थ भावसचं निएयव्यं / / 11 / / दंडाईणं जोगा, दंडी त होइ जोगसच्चं ति। उवमासच्चं तु मवे समुद्दतुल्लं तलायं ति / / 12 / / एमा सहावसच्चा दस भेया मासओ अदोसा य / एत्तो एगंतमुसं, तप्परिहारठ्ठया बेमि // 13 // कोहे माणे माया, लोभे पेज्जे तहेव दोसे य / हासभए अक्खाइय उवधाए निस्सिया दसमा / / 14 / / कोहाभिभूयचित्तो, असंभवादणवबुझि उणं वा / पच्चायंतो अन्नं कयाइ सच्चे वि मोसे व // 15 // माणम्मि अगणुभूयं ईसरियं अत्तणो पयासेइ / मायाए सगडाई, मुहपक्खेवा नयणमोहो / / 16 / कूडपमाणसंकेयजोगवाणिज्जओ उ लोभगया। पेमम्मि वि दासोहं, अत्थविहूणं मुसं होइ / / 17 / जं पुण अवन्नवाओ,तित्थगर राण विपओसियं एसा। नम्मेण हासमोसा चोर व्वेएण भयजणया / / 18 / / संभवरहियं मासइ, कहासु अक्खाइ आगया होइ। उवधायनिस्सिया तह, अब्भवाणुब्भवा जाओ।।१६।। एत्तो उ नयभासा, सच्चामोसा त्ति दसविहा होइ / सम्मं वियारिऊणं, परिहरियव्या विवेईहिं / / 20 / / उत्पत्तिविगमउभया जीवाजीवमयणंतयपरित्ता। अद्धा अद्धद्धा तह. संगहमेत्रोण बोद्धया // 21 // जम्ममरणोभयाणं,संखा बालाइयाण जा नगरे / हीणाहिगा व तत्थ उ विसंवयंती उ सच्चमुमा // 22 // .. 1 'सासणो" इत्यपि / 2 “ससासणो" इत्यपि / 3 “कम्मगं' इत्यपि / 4 "चमत्था' इत्यपि / 5 "अणुकर'' इत्यपि"।
SR No.004404
Book TitleKarmgranth tatha Sukshmarth Vicharsar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeershekharvijay
PublisherBharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti
Publication Year1974
Total Pages716
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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