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________________ अध्यायः 18] सुश्रुतसंहिता। उसलमापनापासपुटपाकगुणान्वितम॥१॥ रणं, यहं पैत्तिके, त्र्यहं वातिके; अन्ये तु एकाहं लेखनीयस्या- पलानि; केचिच्चत्वारि पलानि, कस्मात् ? कुडवादूर्ध्व द्विगुणवचारणं, द्यहं स्नेहनस्य, व्यहं रोपणीयस्येति // परिभाषा। तत्र स्नेहनपुटपाकस्य पेषणालोडनार्थ मांसरसमधुयन्त्रणा तु क्रियाकालाद्विगुणं कालमिष्यते // 28 // रौषधकषायक्षीराणि, लेखनस्य मधुमस्तुत्रिफलोदकानि, रोपतर्पणपुटपाकयोरेकत्र परिहार्यकालमुद्दिशन्नाह-यन्त्रणा तु णस्य तिक्तकषाय इति / अवकूलयेत् विपचेत् / क्षीरदुमा वटाक्रियाकालादिगुणमित्यादि / क्रियाकालात् स्नेहपानादेरारभ्य यः दयः / युक्तित इति पदमवकूलयेदित्यत्र संबन्धनीयम् / युक्तिकालस्तस्माद् द्विगुणः कालः; न पुनस्तर्पणकालात् , तस्याल्प स्तु 'पुटपाकस्य पाकोऽयं बहिरारक्तवर्णता' इति / इदानीं त्वात् // 28 // तर्पणपुटपाकयोर्दोषोपयोगिधर्मान्तरं निर्दिशन्नाह-रक्ते इत्या दि // 33-38 // तेजांस्यनिलमाकाशमादर्श भास्वराणि च // अत्युष्णतीक्ष्णौ सततं दाहपाककरौ स्मृतौ // नेक्षेत तर्पिते नेत्रे पुटपाककृते तथा // 29 // अप्लुतौ शीतलौ चाश्रुस्तम्भरुग्घर्षकारको // 39 // परिहार्याण्याह-तेजांस्यनिलमित्यादि / तेजांसि दीपज्वा- | अतिमात्रौ कषायत्वसङ्कोचस्फुरणावहौ // लाप्रभृतीनि, अनिलं संमुखवायु,भाखराणि आदित्यादीनि // 29 // हीनप्रमाणौ दोषाणामुत्क्लेशजननी भृशम् // 40 // मिथ्योपचारादनयोर्यो व्याधिरुपजायते // तर्पणपुटपाकयोर्विरुद्धगुणमात्रयोापदो निर्दिशन्नाहअअनाश्श्योतनखेदैर्यथास्वं तमुपाचरेत् // 30 // अत्युष्णेत्यादि / अनुतौ मन्दप्लुतौ // 39-40 // अधुना तयोर्व्यापचिकित्साबीजमुद्दिशन्नाह-मिथ्योपचारा युक्तौ कृतौ दाहशोफरुग्घर्षस्रावनाशनौ // दित्यादि / अनयोः तर्पणपुटपाकयोः // 30 // कण्डूपदेहदूषीकारक्तराजिविनाशनौ // 41 // तस्मात् परिहरन् दोषान् विदध्यात्तौ सुखावहौ // प्रसन्नवर्ण विशदं वातातपसहं लघु // युक्तो कृतावित्यादि / दूषीका नेत्रमलः, दोषान् अत्युष्णसुखस्वप्नावबोध्यक्षि पुर तीक्ष्णादिकान् ॥४१॥टपाकस्य सम्यग्यागमाह-प्रसन्नवणामत्यादि // 31 // | व्यापदश्च यथादोष नस्यधूम जयेत् // 42 // अतियोगाद्रुजः शोकः पिडकास्तिमिरोद्गमः॥ इदानीं व्यापच्चिकित्सामाह-व्यापदश्च यथादोषमित्यादि / पुटपाकस्यातियोगमाह-अतियोगाद्रुज इत्यादि / - व्यापदो दाहपाकादिकाः, यथादोषं दोषानतिक्रमेण // 42 // पाकोऽश्रु हर्षणं चापि हीने दोषोद्गमस्तथा // 32 // | आयन्तयोश्चाप्यनयोः खेद उष्णाम्बुचैलिकः॥ | तथा हितोऽवसाने चधूमः श्लेष्मसमुच्छ्रितौ // 43 // पुटपाकस्य हीनयोगमाह-पाक इत्यादि / हर्षों वेदना इदानीं तर्पणपुटपाकयोः पूर्वकर्म पश्चात्कर्म चाह-आद्यविशेषोऽन्तःशीतकरः // 32 // अत ऊर्ध्वं प्रवक्ष्यामि पुटपाकप्रसाधनम्॥ न्तयोश्चाप्यनयोरित्यादि / अनयोः तर्पणपुटपाकयोः / खेद उष्णाम्बुचेलिक इति उष्णाम्बुसिक्तेन कर्पटेन खेद इत्यर्थः / द्वौ बिल्वमात्रौ श्लक्ष्णस्य पिण्डौ मांसस्य पेषितौ 33 | 'तथा हितोऽवसाने च धूमः श्लेष्मसमुत्थिती' इति केचित् द्रव्याणां बिल्वमानं तु द्रवाणां कुडवो मतः॥ | पठन्ति // 43 // तदैकध्यं समालोड्य पत्रैः सुपरिवेष्टितम् // 34 // यथादोषोपयुक्तं तु नातिप्रवलमोजसा // (काश्मरीकुमुदैरण्डपद्मिनीकदलीभवैः॥) / रोगमाश्श्योतनं हन्ति सेकस्तु बलवत्तरम् // 44 // मृदावलिप्तमङ्गारैः खाटैिरवकूलयेत् // 35 // इदानीमाश्चयोतनसेकावाह-यथादोषोपयुक्तमित्यादि / यथाकतकाश्मन्तकैरण्डपाटलावृषबारैः॥ दोषोपयुक्तमिति वातादिजे नेत्ररोगे वातादिहरद्रव्यसिद्धमाश्चयोसक्षीरमकाष्ठा गोमयैवाऽपि युक्तितः॥३६॥ तनमित्यर्थः / नातिप्रबलं नात्युत्कटं रोगम् / ओजसा शक्त्या। स्विन्नमद्धत्य निष्पीड्य रसमादाय तं नृणाम् // सेकस्त बलवत्तरमिति यथादोषोपयुक्तः परिषेकः पुनबेलवत्तरतर्पणोक्तेन विधिना यथाववचारयेत् // 37 // मिति प्रबलं रोग हन्ति / तो चाश्चयोतनसेको चतुर्थेऽहन्याकनीनके निषेच्यः स्यान्नित्यमुत्तानशायिनः॥ गतरोगलक्षणे प्रयोक्तव्यों / तथा च विदेहः-"प्रागेवाश्यारक्ते पित्ते च तो शीतौ कोष्णो वातकफापही // 38 // मये कार्य त्रिरात्रं लघुभोजनम् / उपवासख्यहं वा स्यान्नक्तं __अत ऊर्ध्वमित्यादि / लक्ष्णस्य मांसस्य द्वौ पिण्डौ बिल्व- वाऽप्यशनं व्यहम् // ततश्चतुर्थे दिवसे व्याधि संजातलक्षणम् / मात्र प्रत्येक पलप्रमाणौ कार्यावित्यर्थः / द्रव्याणां बिल्वमान- समीक्ष्याश्चयोतनैः सेकैर्यथास्वमुपपादयेत्"-इति // 44 // मिति स्नेहन लेखनरोपणेषु पुटपाकेषु यथाक्रमं मधुरोषधलेखन-तौ त्रिधैवोपयुज्येते रोगेषु पुटपाकवत् // द्रव्यतिकद्रव्याणां पलप्रमाणमित्यर्थः / द्रवाणां कुडव इति अष्टी इव हात भष्टा तावित्यादि / तो आश्योतनसेको / त्रिधैवेति बेहनसन. 1 अयं पाठो हस्तलिखितपुस्तके नोपलभ्यते / १'चतुर्थ शनि गतबेगेऽश्णि' इति पा
SR No.004403
Book TitleSushrut Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushrut Maharshi, Narayanram Acharya
PublisherChaukhambha Orientaliya
Publication Year
Total Pages922
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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