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________________ 506 निबन्धसंग्रहाख्यव्याख्यासंवलिता [चिकित्सास्थानं रपि प्राप्यते / अभिहुतानां कृतहोमानाम् / क्षीरकुडवमष्टौ हस्तिकर्णपलाशस्य तुल्यपर्णा द्विपर्णिनी॥ पलानि, महती मात्रा / प्रदेशिनीप्रमाणानि आयामविस्तारा- | अजास्तनाभकन्दा तु सक्षीरा क्षुपरूपिणी // 17 // भ्याम् / क्षीरेण विपाच्येति “द्रव्यादष्टगुणं क्षीरं क्षीरात्तोयं अजा महौषधी ज्ञेया शङ्ककुन्देन्दुपाण्डरा॥ चतुर्गुणम् / क्षीरावशेषः कर्तव्यः क्षीरपाके त्वयं विधिः" श्वेतांविचित्रकुसुमांकाकादन्या समां क्षुपाम्॥१८॥ भनेन विधिना / अभिधारितमभिहुतमिति पूर्वमभि- चक्रकामोषधी विद्याजरामृत्युनिवारिणीम् // पारितं पश्चादभिहुतं; अभिघारितम् ईषद्धृताक्तम् / तत्र मूलिनी पञ्चभिः पत्रैः सुरक्तांशुककोमलैः // 19 // चक्रकायाः पयः सकृदेव / गयी तु तत्र चक्रकायाः पायसम्' आदित्यपर्णिनी शेया सदाऽऽदित्यानुवर्तिनी॥ इति पठति, व्याख्यानयति च-तत्र चक्रकायाः पलकल्कं कनकाभा जलान्तेषु सर्वतः परिसर्पति // 20 // द्विगुणिततण्डुलं क्षीरेण साध्यं, सकृदेवोपयुञ्जीत / भक्ष्यकल्पे. सक्षीरा पद्मिनीप्रख्या देवी ब्रह्मसुवर्चला // नेति अपूपादिविधानेन / आनिर्गमादिति गूढागारं कृत्वा तत्रा- अरनिमात्रक्षुपका पत्रैर्घङ्गुलसंमितैः // 21 // वासपर्यन्तमित्यर्थः // 5 // पुष्पैर्नीलोत्पलाकारैः फलैश्चाञ्जनसन्निभैः॥ भवन्ति चात्र श्रावणी महती शेया कनकाभा पयखिनी // 22 // युवानं सिंहविक्रान्तं कान्तं श्रुतनिगादिनम् // श्रावणी पाण्डुराभासा महाश्रावणिलक्षणा // | गोलोमी चाजलोमी च रोमशे कन्दसंभवे // 23 // कुयुरेताः क्रमेणैव द्विसहस्रायुपं नरम् // 6 // | हंसपादीव विच्छिन्नैः पत्रैर्मूलसमुद्भवैः॥ अङ्गदी कुण्डली मौली दिव्यस्रक्चन्दनाम्बरः॥ | अथवा शङ्खपुष्प्या च समाना सर्वरूपतः // 24 // चरत्यमोघसङ्कल्पो नभस्यम्बुददुर्गमे // 7 // | वेगेन महताऽऽविष्टा सर्पनिर्मोकसन्निभा // वजन्ति पक्षिणो येन जललम्बाश्च तोयदाः॥ एषा वेगवती नाम जायते ह्यम्बुदक्षये // 25 // गतिः सौषधिसिद्धस्य सोमसिद्ध गैतिः परा // 8 // विस्तृतकनिष्ठाङ्गुलिमुष्टिकहस्तः अरनिः / श्वेतकापोतिसंस्थिते. अतः परं फलश्रुतिमाह-युवानमित्यादि / विक्रान्तं विक्रम इति श्वेतकापोतिकाकृतीत्यर्थः / रक्षोप्ने इति स्वभावेन रक्षसां युक्तम् / कान्तं मनोज्ञम् / क्रमेणवेति शास्त्रविहितसकलक्रमण। प्रध्वंसकरे / काञ्चनवर्ण क्षीरं यस्याः सा काञ्चनक्षीरी / क्षुपअङ्गदी केयूरयुक्तः, कुण्डली कुण्डलयुक्तः, मौली मुकुटधारी, सक् रूपिणी विटपरूपिणी, बद्धमुष्टिकरः अरनिः / निवातेऽपि माला, अम्बरं वस्त्रम् , अमोघसङ्कल्पः सफलकामितः / नभसि खभाववेगेनाविष्टा / अम्बुदक्षये शरदि // 9-25 // आकाशे / अम्बुददुर्गमे मेधैर्दुःखसञ्चारे / सोमसिद्धे गतिः परेति सोमसिद्ध पुरुषे पुनरेवमुत्कृष्टं गमनं भवतीत्यर्थः // 6-8 // गम भवतीत्यर्थः सप्तादौ सर्परूपिण्यो ह्योषध्यो याः प्रकीर्तिताः॥ तासामुद्धरणं कार्य मन्त्रेणानेन सर्वदा // 26 // अथ वक्ष्यामि विज्ञानमौषधीनां पृथक पृथक् // महेन्द्ररामकृष्णानां ब्राह्मणानां गवामपि // मण्डलैः कपिलैश्चित्रैः सर्पाभा पञ्चपर्णिनी॥९॥ | तपसा तेजसा वाऽपि प्रशाम्यध्वं शिवाय वै // 27 // पश्चारनिप्रमाणा च विज्ञेयाऽजगरी बुधैः // मन्त्रेणानेन मतिमान् सर्वा एवाभिमंत्रयेत् // निष्पत्रा कनकाभासा मूले द्यङ्गुलसंमिता // 10 // | अश्रद्दधानरलसैः कृतनैः पापकर्मभिः // 28 // सर्पाकारा लोहितान्ता श्वेतकापोतिरुच्यते // | नैवासादयितुं शक्याः सोमाः सोमसमास्तथा // द्विपर्णिनी मूलभवामरुणां कृष्णमण्डलाम् // 11 // अनेन मन्त्रेणोद्धरणमुत्पाटनमोधपरिरक्षार्थमभिमतफलप्रा. घरनिमात्र जानीयागोनसी गोनसाकृतिम् // यथं च / मन्त्रमाह-महेन्द्रेत्यादि / प्रशाम्यध्वम् उपशमं सक्षीरां रोमशां मृद्वी रसेनेक्षुरसोपमाम् // 12 // कुरुतः किमर्थ ? शिवाय कल्याणाय / वै निश्चितम् / नैवासादएवंरूपरसां चापि कृष्णकापोतिमादिशेत् // यितुं नैव प्राप्तम् // २६-२८॥कृष्णसर्पखरूपेण वाराही कन्दसंभवा // 13 // एकपत्रा महावीर्या भिन्नाञ्जनसमप्रभा॥ पीतावशेषममृतं देवैब्रह्मपुरोगमैः // 29 // छत्रातिच्छत्रके विद्याद्रक्षोने कन्दसंभवे // 14 // | निहितं सोमवीर्यासु सोमे चाप्योषधीपतौ // जरामृत्युनिवारिण्यो श्वेतकापोतिसंस्थिते // पौराणिकी श्रुतिं दर्शयन्नाह-पीतेत्यादि / निहितं धृतम् / कान्तै-दशभिः पत्रैर्मयूराङ्गरुहोपमैः // 15 // सोमवीर्यासु औषधिषु / सोमे चन्द्रमसि // 29 ॥कन्दजा काश्चनक्षीरी कन्या नाम महौषधी॥ देवसन्ते हववरे तथा सिन्धौ महानदे // 30 // करेणुः सुबहुक्षीरा कन्देन गजरूपिणी // 16 // दृश्यते च जलान्तेषु मेध्या ब्रह्मसुवर्चला // 1 'कन्यकायाः' इति पा०। 2 'कन्यकायाः' इति पा०। 1 'तक्रकां' इति 'नक्रकां' इति च पा०। 2 भिषगातुर.. सोमसिखगतिः' इति पा० / 4 'सोमसिद्धस' इति पा०। / परिरक्षार्थ इति पा० /
SR No.004403
Book TitleSushrut Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushrut Maharshi, Narayanram Acharya
PublisherChaukhambha Orientaliya
Publication Year
Total Pages922
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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