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________________ भध्यायः 21] सुश्रुतसंहिता / धाच्या इत्यादि / कासीसादिभिरम्लकालिकादिपिष्टैः प्रले- खेदयेदित्यादि / शश्वत् प्रतिदिनम् / सुमिग्धेरित्युपनाहपनं, बदरीत्वसैन्धवैर्वा प्रलेपनम् / कपालं पक्वमृद्भाण्डखण्डः। विशेषणम् / तैलेन त्रिफलादिकल्कपादेन जलचतुर्गुणसिमहिपूतनोक्तश्च धात्रीशोधनवर्ज घृतपानादिः // 57-60 // द्धन रोपयेत् // 5 // 6 // गुदभ्रंशे गुदं स्विन्नं स्नेहाभ्यक्तं प्रवेशयेत् // ग्राहयित्वा जलौकोभिरलजी सेचयेत्ततः॥ कारयेद्गोफणाबन्धं मध्यच्छिद्रेण चर्मणा // 1 // | कषायैस्तेषु सिद्धं च तैलं रोपणमिष्यते // 7 // विनिर्गमार्थ वायोश्च स्वेदयेच्च मुहुर्मुहुः॥ ग्राहयित्वेत्यादि / कषायः कषायवृक्षकषायैः, कषायवृक्षाः क्षीर महत्पश्चमूलं मूषिकांचावर्जिताम // 2 // | प्लक्षादयः // 7 // पक्त्वा तस्मिन् पचेत्तैलं वातघ्नौषधसंयुतम्। बलातैलेन कोष्णेन मृदितं परिषेचयेत् // गुदभ्रंशमिदं कृच्छ्रे पानाभ्यङ्गात् प्रसाधयेत् // 63 // मधुरैः सर्पिषा स्निग्धैः सुखोष्णैरुपनाहयेत् // 8 // इति सुश्रुतसंहितायां चिकित्सास्थाने क्षदरोग- बलेत्यादि / मधुराणि काकोल्यादीनि // 8 // चिकित्सितं नाम विंशोऽध्यायः॥२०॥ संमूढपिडकां क्षिप्रं जलौकोभिरुपाचरेत् // गुदेत्यादि / मूषिकां निर्गतान्त्रां कृत्वा महत्पञ्चमूलस्य प्रस्थं | भित्त्वा पर्यागतां चापि लेपयेत् क्षौद्रसर्पिषा // 9 // क्षीरप्रस्थे त्रिगुणितजले विपचेत्, क्षीरप्रस्थेऽवशिष्टे तैलकुडवं ___ संमूढेत्यादि / पर्यागता पक्का // 9 // दत्त्वा, भद्रदादिकल्कपादं कृत्वा, पचेत् ; तद्यथाबलं पाना- | अवमा अवमन्थे गते पाकं भिन्ने तैलं विधीयते // भ्यङ्गाभ्यां गुदभ्रंशं साधयेत् // 61-63 // धवाश्वकर्णपत्तङ्गसल्लकीतिन्दुकीकृतम् // 10 // क्रियां पुष्करिकायां तु शीतां सर्वां प्रयोजयेत् // इति श्रीडल्ह()णविरचितानां निबन्धसंग्रहाख्यायां सुश्रुत-जलोकोभिहरेच्चासक सर्पिषा चावसेचयेत् // 11 // - व्याख्यायां चिकित्सास्थाने विंशतितमोऽ | स्पर्शहान्यां हरेद्रक्तं प्रदिह्यान्मधुरैरपि // ध्यायः // 20 // क्षीरेक्षुरससपिर्भिः सेचयेच्च सुशीतलैः // 12 // अवमन्थेत्यादि / अश्वकर्णः पूर्वदेशे 'गन्धमुण्ड' इति ख्यातोएकविंशतितमोऽध्यायः। ऽश्वत्थसरशः / पत्तङ्गं रक्तचन्दनम् // 10-12 // अथातः शूकदोषचिकित्सितं व्याख्यास्यामः॥१॥ | पिडकामुत्तमाख्यां च बडिशेनोद्धरेद्भिषक् // यथोवाच भगवान् धन्वन्तरिः॥२॥ | उद्धृत्य मधुसंयुक्तैः कषायैरवचूर्णयेत् // 13 // शकादिदोषचिकित्सितमिति झयम. आदिशब्दस्य लप्त- पिडकामित्यादि / कषायैः चूर्णरित्यर्थः / शोधनकाले तु शोधत्वात् ; तत्रादिशब्देन निदानोक्ता अभिघातनिमित्ता दुर्भगनि- | नद्रव्येचूर्णीकृतैरवचूर्णयेत् , रोपणकाले तु रोपणैरेव // 13 // मित्ताश्चात्र ज्ञातव्याः॥१॥२॥ | रसक्रिया विधातव्या लिखिते शतपोनके॥ संलिख्य सर्षपी सम्यक कषायैरवचर्णयेत॥ पृथकपण्यादिसिद्धं च देयं तैलमनन्तरम् // 14 // कषायेष्वेव तैलं च कुर्वीत व्रणरोपणम् // 3 // | क्रियां कुर्याद्भिषक् प्राशस्त्वक्पाकस्य विसर्पवत् // रसक्रियेत्यादि / रसक्रिया फाणिताकृतिः, शोधनकाले शोधनसंलिख्येत्यादि / कषायैरिति कषायवृक्षचूर्णैरवचूर्णयेत् , ह, द्रव्यकषायकृता, रोपणकाले रोपणद्रव्यकषायकृता / पृथक्कषायवृक्षमिश्रकोक्कशोधनकषायसाधनद्रव्यैश्वीकृतैरवचूर्णये पादिसिद्धं तैलं सामान्यस्नेहपरिभाषाकल्पेन, पृथक्पादीनि दित्यर्थः / तेषु रोपणकषायसाधनद्रव्येषु पादिकेषु जलं चतु मिश्रके रोपणघृतपठितानि काकोल्यादिवर्जितानि / विसर्पवत् गुणं दत्त्वा रोपणं तैलं कुर्यात् // 3 // पित्तविसर्पवदित्यर्थः // 14 ॥अष्ठीलिकां जलौकोभिहयेच्च पुनः पुनः॥ रक्तविद्रधिवच्चापि क्रिया शोणितजेऽर्बुदे // 15 // तथा चानुपशाम्यन्ती कफग्रन्थिवदुद्धरेत् // 4 // कषायकल्कसपीषि तैलं चूर्ण रसक्रियाम् // अष्ठीलिकामित्यादि / कफप्रन्थेरिव शस्त्रेणोद्धरणम् // 4 // शोधनं रोपणं चैव वीक्ष्य वीक्ष्यावचारयेत् // 16 // हितं च सर्पिषः पानं पथ्यं चापि विरेचनम् // स्वेदयेथितं शश्चन्नाडीखेदेन बुद्धिमान् // |हितः शोणितमोक्षश्च यच्चापि लघु भोजनम् // 17 // सुखोष्णैरुपनाहैश्च सुस्निग्धैरुपनाहयेत् // 5 // | अर्बुद मांसपाकं च विद्रधि तिलकालकम् // कुम्मीकां पाकमापन्नां भिन्द्याच्छुद्धां तु रोपयेत् // | तैलेन त्रिफलालोध्रतिन्दुकाम्रातकेन तु // 6 // प्रत्याख्याय प्रकुर्वीत भिषक् सम्यक् प्रतिक्रियाम्१८ इति सुश्रुतसंहितायां चिकित्सास्थाने शूकरोग१'ग्राहयेत् कुशलो भिष' इति पा०। चिकित्सितं नामैकविंशोऽध्यायः // 21 // सु०सं०६१
SR No.004403
Book TitleSushrut Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushrut Maharshi, Narayanram Acharya
PublisherChaukhambha Orientaliya
Publication Year
Total Pages922
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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