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________________ 168 निबन्धसंग्रहाख्यव्याख्यासंवलिता [चिकित्सास्थानं श्यामात्रिभण्डीत्रिफलासु सिद्धं कृशदुर्बलभीरूणां नाडी मर्माश्रिता च या॥ हरिद्रयो रोधकवृक्षयोश्च // क्षारसूत्रेण तां च्छिन्द्यान्न तु शस्त्रेण बुद्धिमान 29 घृतं सदुग्धं व्रणतर्पणेन एषण्या गतिमन्विष्य क्षारसूत्रानुसारिणीम् // हन्याद्गति कोष्ठगताऽपि या स्यात् // 22 // सूची निदध्याद्गत्यन्ते तथोन्नम्याशु निर्हरेत् // 30 // श्यामेत्यादि / -श्यामा वृद्धदारुकः / त्रिभण्डी त्रिवृत् / / | सूत्रस्यान्तं समानीय गाढं बन्धं समाचरेत् // ततः क्षारबलं वीक्ष्य सूत्रमन्यत् प्रवेशयेत् // 31 // वृक्षकः कुटजः // 22 // क्षाराक्तं मतिमान् वैद्यो यावन्न छिद्यते गतिः॥ . नाडी कफोत्थामुपनाह्य सम्यक भगन्दरेऽप्येष विधिः कार्यों वैद्येन जानता // 32 // कुलत्थसिद्धार्थकशक्तकिण्वैः॥ अर्बुदादिषु चोत्क्षिप्य मूले सूत्रं निधापयेत् // मृदूकृतामेष्य गतिं विदित्वा सूचीभिर्यववक्राभिराचितान् वा समन्ततः॥ निपातयेच्छस्त्रमशेषकारी // 23 // मूले सूत्रेण बध्नीयाच्छिन्ने चोपचरेद्रणम् // 33 // दद्याद्रणे निम्बतिलान् संदन्तीन् कृशेत्यादि / क्षारसूत्रेण क्षाराक्तसूत्रेण / तत्र क्षारसूत्रावसुराष्ट्रजासैन्धवसंप्रयुक्तान् // प्रक्षालने चापि करञ्जनिम्ब चारणाप्रकारे निर्दिशन्नाह-एषण्येत्यादि / अर्बुदादिष्विति आदिशब्दान्थ्यादीनां ग्रहणम् / तनुमूलेषु अर्बुदादिषु, उरिक्षप्य जात्यक्षपीलुस्वरसाःप्रयोज्याः॥२४॥ मूले क्षारसूत्रं निधापयेत् ; विशालमूलांश्चार्बुदादीन् क्षारसूत्रप्र. . सुवर्चिकासैन्धवचित्रकेषु तिष्ठापनार्थे सर्वतः सूचीभिराविध्य, मूले क्षारसूत्रेण बनीयात् . निकुम्भतालीतलरूपिकासु // // 29-33 // फलेष्वपामार्गभवेषु चैव कुर्यात् समूत्रेषु हिताय तैलम् // 25 // | या द्विवणीयेऽभिहितास्तु वर्त्यनाडीमित्यादि / किण्वः सुराबीजम् / अशेषकारी वैद्यः।। स्ताः सर्वनाडीषु भिषग्विद्ध्यात् // दद्यादित्यादि / सुराष्ट्रजा तुवरमृत्तिका / प्रक्षालने इत्यादि / घोण्टाफलत्वग्लवणानि लाक्षानिकुम्भो दन्ती / तालीतलं मुशलीमूलं; नलमित्यन्ये पठन्ति, - पूगीफलं चालवणं च पत्रम् // 34 // .. तत्र नलः शुषिरपर्वा खनामप्रसिद्धः / रूपिका श्वेतार्कः / नुहर्कदुग्धेन तु कल्क एष 'नीलीफलरूपिकाभिः' इति केचित् पठन्ति; नीलीफलं शारदं _वर्तीकृतो हन्त्यचिरेण नाडीः॥ फलं, श्रीफलिकेति लोके // 23-25 // बिभीतकाम्रास्थिवटप्रवाला नाडी तु शल्यप्रभवां विदार्य हरेणुकाशिनिबीजमस्यः // 35 // निहत्य शल्यं प्रविशोध्य मार्गम् // वाराहिकन्दश्च तथा प्रदेयो .. संशोधयेत् क्षौद्रघृतप्रगाढे नाडीषु तैलेन च मिश्रयित्वा // 36 // धतूर मदनकोद्रयजं च बीज स्तिलैस्ततो रोपणमाशु कुर्यात् // 26 // कुम्भीकखर्जूरकपित्थबिल्व __ कोशातकी शुकनसा मृगभोजिनी च // वनस्पतीनां च शलाटुवर्गः॥ अङ्कोटबीजकुसुमं गतिषु प्रयोज्यं कृत्वा कषायं विपचेत्तु तैल लाक्षोदकाहृतमलासु विकृत्य चूर्णम् // 37 // तथा च गोमांसमसी हिताय मावाप्य मुस्तासरलाप्रियङ्गः // 27 // कोष्ठाश्रितस्यादरतो दिशन्ति // सुगन्धिकामोचरसाहिपुष्पं वर्तीकृतं माक्षिकसंप्रयुक्तं रोभ्रं विदध्यादपि धातकी च // एतेन शल्यप्रभवा तु नाडी . नाडीनमुक्तं लवणोत्तमं वा // 38 // दुष्टवणे यद्विहितं च तैलं रोहेड़णो वा सुखमाशु चैव // 28 // तत् सर्वनाडीषु भिषग्विद्ध्यात् // नाडीमित्यादि / कुम्भीकः स्थलकुम्भिका, वनस्पतयो चूर्णीकृतैरथ विमिश्रितमेभिरेव वटाद्याः, कुम्भिकादीनां शलाटूनि कोमलफलानि प्राह्याणि / तैलं प्रयुक्तमचिरेण गतिं निहन्ति // 39 // सरला त्रिवृत् / सुगन्धिका उत्पलसारिवा / मोचरसः शाल्मलीचुम्पः / अहिपुष्पं नागकेशरम् // 26-28 // १'विद्यते' इति पा०। 2 'सूचीभिराचितान्' इति पा०। | 3 "चूर्णमिति क्रियाविशेषणात् चूर्ण विकृत्य चूणीकृत्वेत्यर्थः' इति १'सुपिष्टान्' इति पा०।२'भूम्यामकमूलं' इति पा०। हाराणचन्द्रः।
SR No.004403
Book TitleSushrut Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushrut Maharshi, Narayanram Acharya
PublisherChaukhambha Orientaliya
Publication Year
Total Pages922
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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