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________________ अध्यायः 8] सुश्रुतसंहिता। __ इदानीं सर्वभगन्दराणामेव शस्त्रपातनवेदनासु तच्छमनाय एतत् संभृत्य संमारं तैलं धीरो विपाचयेत् // 45 // नेहपरिषेकादीनि निर्दिशनाह-एतत्कर्मेत्यादि / तत्राणुतैलं एतद्वै गण्डमालासु मण्डलेष्वथ मेहिषु॥ केवलं वातवेदनाविषयम् / वातघ्नौषधानि भद्दा दीन्येरण्डा- | रोपणार्थ हितं तैलं भगन्दरविनाशनम् // 46 // दीनि च / बाष्पखेदस्तु कर्तव्यो वायौ रक्तपित्तसमन्विते मागधी पिप्पली / समझा अञ्जलिकारिका; वराहकान्ते त्यपरे। कल्पनामाह-नेहचतुर्थांशो मेषजकल्कः, स्नेहाचकदलीमृगलोपाकप्रियकाजिनसंभृतान् // तुर्गुणो द्रवः, द्रवोऽत्र पानीयम् "अनुक्ते द्रवकार्ये तु सर्वत्र कारयेदुपनाहांश्च साल्वणादीन् विचक्षणः॥३७॥ सलिलं स्मृतम्" (च. क. अ. 12) इत्युक्तखात् // 43-46 // कातकफजे वेदनायामुपनाहखेदमुद्दिशमाह-कदलीत्यादि। न्यग्रोधादिगणश्चैव हितः शोधनरोपणे // कदलीमृगः पूर्वदेशे प्रायशः शबलो दृष्टः, स तु बृहत्तमबिडा- तैलं घृतं वा तत्पक्वं भगन्दरविनाशनम् // 47 // लसमो व्याघ्राकारो बिलेशयः; लोपाको लाङ्गलकः शृगाल- शोधनेरोपणे 'कषायादिभिः' इति शेषः // 47 // भेदः; प्रियकः ललितकोऽजगरप्रायः श्लक्ष्णो दीर्घः; अजिनं त्रिवृहन्तीहरिद्रार्कमूलं लोहाश्वमारकौ // चर्म // 37 // | विडङ्गसारं त्रिफला मुहर्कपयसी मधु // 48 // कटुत्रिकं वचाहिङ्गुलवणान्यथ दीप्यकम् // | मधूच्छिष्टसमायुक्तैस्तैलमेतैर्विपाचयेत् // पाययेच्चाम्लकौलत्थसुरासौवीरकादिभिः // 38 // भगन्दरविनाशार्थमेतद्योज्यं विशेषतः॥४९॥ कटत्रिकमित्यादि / दीप्यकमजमोदा। अम्लं काजिकम. त्रिवृदिल्यादि / लोहमगुरु / अश्वमारकः करवीरः / नही सुरा मधमेदः, सौवीरकं काजिकमेदः / एतदपि गुदकोष्ठगत- सेहुण्डः / इदमपि तैलं सामान्यकल्कपरिभाषया कर्तव्यम वेदनोपशमार्थम् // 30 // // 48 // 49 // ज्योतिष्मतीलाङ्गलकीश्यांमादन्तीत्रिवृत्तिलाः॥ चित्रकार्को त्रिवृत्पाठे मलपूं हयमारकम् // कुष्ठं शताबा गोलोमी तिल्वको गिरिकर्णिका // 39 // सुधां वचां लाङ्गलकी सप्तपर्ण सुवर्चिकाम् // 50 // कासीसं काञ्चनक्षीयौं वर्गः शोधन इष्यते // ज्योतिष्मतीं च सम्भृत्य तैलं धीरो विपाचयेत् // ____ अतः परं भगन्दरक्षतानां शोधनीयोत्सादनीयरोपणीयान् एतद्धि स्यन्दन तैले भृशं दद्याद्भगन्दरे // 51 // वैशेषिकान्निर्दिशन्नाह-ज्योतिष्मतीत्यादि / ज्योतिष्मती शोधनं रोपणं चैव सवर्णकरणं तथा // कुङ्कुमदनिका, लाङ्गली कलिहारिका, इमामा त्रिवृद्विशेषः / द्विवणीयमवेक्षेत व्रणावस्थासु बुद्धिमान् // 52 // गोलोमी दूर्वा / तिल्वकः पट्टिकारोधः / गिरिकर्णिका श्वेत- चित्रकेत्यादि / मलपूः काकोदुम्बरिका / हयमारकः करस्यम्दा / ' काश्चनक्षी? द्वे एक ककष्ठम्, अन्या पीतदुग्धा | वीरः / सुधा मुही / सुवर्चिका खर्जिक्षारः / एतद्धि स्यन्दनम् बृहस्पत्री यवतिक्का / वर्गस्य यथालामेन प्रयोगः / एष वर्गों इत्यत्र 'एतद्विस्यन्दनं' इति पाठे विशेषेण स्पन्दयति दोषांभगन्दरशोधनः कषायादिषु // 39 // -. | श्श्यावयतीति यथार्थ नाम विस्यन्दनम् // 50-52 // त्रिवृत्तिला नागदन्ती मञ्जिष्ठा पयसा सह // 40 // छिद्रादूर्वे हरेदोष्ठमर्शोयन्त्रस्य यन्त्रवित् // . उत्सादनं भवेदेतत् सैन्धवक्षौद्रसंयुतम् // ततो भगन्दरे दद्यादेतदर्धेन्दुसन्निभम् // 53 // त्रिवृदित्यादि / नागदन्ती दन्तिनी / उत्सादनं निम्नव्रणव- भगन्दरयन्त्रमर्शोयन्त्रादवयवविशेषापनयने विशिष्टं निर्दिखनः पूरणं लेपनयोगेन / 'पयसा सह' इत्यत्र 'सर्पिषा सह' शमाह-छिद्रादूर्ध्व मित्यादि // 53 // इति केचित् पठन्ति // 40 // व्यायाम मैथुनं कोपं पृष्ठयानं गुरूणि च // रसाञ्जनं हरिद्रे वे मजिष्ठानिम्बपल्लवाः॥४१॥ | संवत्सरं परिहरेदुपरूढवणो नरः॥५४॥ त्रिवृत्तेजोवतीदन्तीकल्को नाडीव्रणापहः॥ इति सुश्रुतसंहितायां चिकित्सास्थाने भगन्दकुष्ठं त्रिवृत्तिला दन्ती मागध्यः सैन्धवं मधु // 42 // | रचिकित्सितं नामाष्टमोऽध्यायः॥८॥ रजनी त्रिफला तुत्थं हितं स्याद्रणशोधनम् // रूढभगन्दरस्यापि पुनरनुबन्धभयात् परिहार्यमुद्दिशनाहरसाअनादिकुष्ठादियोगौ रोपणशोधनौ // 41 // 42 // - व्यायाममित्यादि // 54 // रोधं कुष्ठमेला हरेणवः॥४३॥ | इति श्रीडल्ह(ह)णविरचितायां निबन्धसंग्रहाख्यायां सुश्रुतसमझा धातकी चैव सारिवा रजनीद्वयम् // व्याख्यायां चिकित्सास्थानेऽष्टमोऽध्यायः॥८॥ प्रियङ्गवः सर्जरसः पद्मकं पद्मकेसरम् // 44 // सुंधा वचा लाङ्गलकी मधूच्छिष्टं ससैन्धवम् // 1-2 'शोधनरोपणः' इति पा० / ३°कल्पपरिभाषया' १०लेपो' इति पा० / २'मातुलुङ्गस्य पत्राणि' इति पा० / इति पा०। ४'पतन्यम्' इति पा० / सु० सं०५६ -- --- माशो
SR No.004403
Book TitleSushrut Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushrut Maharshi, Narayanram Acharya
PublisherChaukhambha Orientaliya
Publication Year
Total Pages922
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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