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________________ 234 निबन्धसंग्रहाख्यव्याख्यासंवलिता [ सूत्रस्थान - लोणिकेत्यादि / लोणिका लोणिया; जातुकं शुक्लशालपर्णी; अथ पुष्पवर्गः। त्रिपर्णिका दुग्धिका, वनकापासीत्यपरे; पत्तूरः शिरबालिकाभेदो कोविदारशणशाल्मलीपष्पाणि मधराणि मधर महापत्रः; जीवको जीवनामा खनामप्रसिद्धः; सुवर्चला सूर्याव विपाकानि रक्तपित्तहराणि च; वृषागस्त्ययोः तभेदः, डुडुरकः खनामप्रसिद्धः; कुतुम्बको द्रोणपुष्पः; कुठिञ्जरः पुष्पाणि तिक्तानि कटविपाकानि क्षयकासापहानि कुरहजनकः 'कोल्हसुआ' इति लोके; कुनाडिकेति क्वचित् , तत्र च // 281 // कुनाडिका गोनाडीकः; कुन्तलिका चुचूसदृशा दीर्घपत्रा; कुरु. __ अथ पुष्पशाकान्याह-कोविदारेत्यादि / कोविदारः काञ्चण्टिका अम्लानसदृशपत्रकुसुमा हरितपुष्पा, अन्ये 'कुनालिका. नारस्तद्भेदो वा; शणो बन्धनार्हत्वक् प्रसिद्धः / तेषां सामान्यगुणकुरण्टिके उत्तरापथजे' इत्याहुः, केचित्रिपादीनां श्लोकेन माह-मधुराणीत्यादि / वृषेत्यादि / वृषो वासकः, अगस्त्यः निर्देशं कुर्वन्ति // 274 // 'अगधीया' इति लोके // 281 // स्वादुपाकरसाः शीताः कफना नातिपित्तलाः॥ आगस्त्यं नातिशीतोष्णं नक्तान्धानां प्रशस्यते 282 लवणानुरसा रूक्षाः सक्षारा वातलाः सराः॥२७॥ | तयोरगस्त्यपुष्पस्य गुणविशेषमाह-आगस्त्यमित्यादि 282 तेषां सामान्यं गुणमाह-खादुपाकेत्यादि / 275 // करीरकुसुमानि कटुविपाकानि वातहराणि सृष्टस्वादुतिक्ता कुन्तलिका कषाया सकुरण्टिका // मूत्रपुरीषाणि च // 283 // विशेषगुणमाह-खाद्वित्यादि // करीरेत्यादि / अत्रापि रसवीर्यविपाकप्रभावितं कार्य योजसंग्राहि शीतलं चापि लघु दोषापहं तथा // नीयम् // 283 // राजक्षवकशाकं तु शटीशाकं च तद्विधम् // 276 // रक्तवृक्षस्य निम्बस्य मुष्ककार्कासनस्य च // प्रभृतिगृहीतमाह-संग्राहीयादि 'दोषापहं तथा' इत्यत्र कफपित्तहरं पुष्पं कुष्ठघ्नं कुटजस्य च // 284 // 'दोषविरोधि च' इति केचित् पठन्ति, तन्नेच्छति जेज्झटः। रक्तवृक्षस्येत्यादि / रक्तवृक्षस्य रक्तचन्दनस्य / मुष्ककस्यराजक्षवकशाकं कृष्णराजिका, अन्ये तु 'राजक्षवको बृहत्पत्रः क्षारवृक्षस्य 'मोखउ' इति लोके, असनो बीजकः / शेष प्रसिक्षवथुकाकर' इत्याहुः / शटी खनामप्रसिद्धा / तद्विधमिति राज द्धम् // 284 // क्षवकसदृशम् // 276 // सतिक्तं मधुरं शीतं पद्मं पित्तकफापहम् // मधुरं पिच्छिलं स्निग्धं कुमुदं हादि शीतलम् // खादुपाकरसं शाकं दुर्जरं हरिमन्थजम् // तस्मादल्पान्तरगुणे विद्यात् कुवलयोत्पले // 285 // खाद्वित्यादि / हरिमन्थश्चणकः // सतिक्तमित्यादि / पद्मं पद्मपुष्पं सूर्योदयविकासि / कुमुदं मेदनं मधुरं रूक्ष कालायमतिवातलम् // 277 // चन्द्रोदयविकासि / कुवलयं कुमुदभेदः, उत्पलं खनामप्रसिद्धम् भेदनमित्यादि / पूर्व सतीनो वर्तुलकलायः, इह तु त्रिपुटक- // 285 // कलायः // 277 // सिन्धुवारं विजानीयाद्धिमं पित्तविनाशनम् // खंसनं कटुकं पाके लघु वातकफापहम् // सिन्धुवारमित्यादि / सिन्धुवारं निर्गुण्डीपुष्पम् ॥शोफनमुष्णवीर्यं च पत्रं पूतिकरअजम् // 278 // मालतीमल्लिके तिक्ते सौरभ्यात् पित्तनाशने // 286 // स्रंसनमित्यादि / पूतिकरजः कण्टकिकरजः, अन्ये तु पूतिक- मालतीत्यादि / मालती जाती; मल्लिका प्रसिद्धा / सौरभ्यात् श्विरबिल्वः, करजो नक्तमालः // 278 // सौगन्ध्यात् // 286 // ताम्बूलपत्रं तीक्ष्णोष्णं कटु पित्तप्रकोपणम् // सुगन्धि विशेदं हृद्यं बाकुलं पाटलानि च // सुगन्धि विशदं तिक्तं स्वर्य वातकफापहम् // 279 // श्लेष्मपित्तविषघ्नं तु नागं तद्वच्च कुङ्कुमम् // 287 // स्रंसनं कटुकं पाके कषायं वह्निदीपनम् // सुगन्धीत्यादि / नागं नागकेशरम् / तद्वन्नागवत् / कुङमं वक्रकण्डूमेलक्लेददोगेंन्ध्यादिविशोधनम् // 280 // प्रसिद्धम् // 287 // ताम्बूलेत्यादि / ताम्बूलपत्रं नागवल्लीपत्र 'पर्णम्' इति लोके। 'चम्पर्क रक्तपित्तनं शीतोष्णं कफनाशनम् // स्रंसनं कटुकं पाके इत्यन्तं पर्णमुक्खा कषायमित्यादि पूगफलं. किंशुकं कफपित्तनं तद्वदेव कुरण्टकम् // 288 // तस्य फलवर्ग एवं पठितखान पठनीयमित्ये के, अन्ये फलवर्गे किंशुकं पलाशपुष्पं, कुरण्टकं सहचरपुष्पम् // 28 // पक्वमित्युक्तं शाकेषु खपक्कमा चेत्याहुः // 279 // 280 // यथावृक्षं विजानीयात् पुष्पं वृक्षोचितं तथा // १०गलकेद" इति पा० / 1 'करीरमधुशिकुसुमानि' इति पा० / 2 ‘मधुरं' इति पा० /
SR No.004403
Book TitleSushrut Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushrut Maharshi, Narayanram Acharya
PublisherChaukhambha Orientaliya
Publication Year
Total Pages922
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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