________________ काव्यमाला / रतिशर्मा द्विजन्मायं गणिकाग्रहशान्तिकृत् / आरामिकः करालोऽयं कीलवर्तश्च नाविकः // 39 // उद्यानपालः कन्दोऽयं मुकुलाख्यश्च पौष्पिकः / चर्मकर्मदत्तोऽयं मारच्छिद्रश्च धावकः // 40 // बहिरास्ते च चाण्डाली क्रोशन्ती घर्धराभिधा / डोम्बश्चण्डरवाख्यश्च कोष्ठागारप्रहारिकः // 41 // ताम्बूलं देयमेतेभ्यः प्रहेयं प्रातरेव तु / सख्यै शम्बरमालायै गुरवे दम्भभूतये // 42 // उक्त्वेति पूगफललुण्ठिनिविष्टचित्ता __वैतालिका विविधवेशवनीप्रविष्टाः / चक्रुः प्रभूतमधुपानविघूर्णमाना स्ताम्बूलदानबहुमानगतागतानि // 43 // ततः क्षीरसंभाव्यं कत्थमानैर्विटैः परम् / उद्वेजितेव रजनी धूपव्याजेन निर्ययौ // 44 // नृपस्य बाहुर्युधि दक्षिणोऽहं ममैव राज्यं कलमान्तरस्थम् / माय स्थिते तिष्ठति नाट्यशास्त्रं सूते तुला वित्तपतिश्रियं मे // 45 // त्रैलोक्यवृत्तं गणितेन वेद्मि मयैव भोजस्य कृता चिकित्सा / भुक्ता मया भूपतयः स्वसूक्तैरित्यूचिरे मद्यमदोद्धतास्ते // 46 // विसृष्टास्ते कलावत्या ताम्बूलार्पणलीलया / निर्ययुः कलयन्तोऽन्तर्भाविनी भोज्यसंपदम् // 47 // अथ विततवितानं हंसशुभ्रोपधानं __ शयनममलचीनप्रच्छदाच्छादिताग्रम् / अभजत हरिणाक्षी क्षीबमादाय बालं निजपरिजननर्मस्मेरवक्राम्बुजश्रीः // 48 // 1. 'गेहशान्तिकृत्' इति पाठः.