________________ 4 समयः] . समयमातृका / 25 सोऽथ मुग्धः प्रकृत्यैव सत्यप्रत्ययमोहितः / चक्रे शूलोपशान्त्यै मे चक्रे सर्वाङ्गमर्दनम् // 50 // सादरं मृद्यमानेषु तेनाङ्गेषु शनैः शनैः / प्रययौ सोपरोधेव क्षणदा क्षणवन्मम // 11 // ततः प्रभाते तद्भोगवञ्चने चिन्तितं मया / पशुबुद्धिर्वराकोऽयं मया शूलेन वाहितः // 12 // अनेन मेषमुग्धेन दत्ता भाटी चतुर्गुणा। भोगावहारन्यायेन ध्रुवं तामनुयाचते // 13 // तस्मादेष रतिस्टष्टीकार्यस्तावद्यथा तथा / न्यायाय सुरतोच्छिष्टः कथं समुपसर्पति // 54 // इति ध्यात्वाहमारब्धरतिभोगा क्षपाक्षये। प्रीत्येवाकरवं तस्य पण्यानृण्याय चुम्बनम् // 55 // आरूढरतियन्त्रो मे शूलक्लेशकृपाकुलः। अलं मत्संगमेनेति सानुरोधोऽवदत्स माम् // 16 // आवर्जनाय तस्याथ निर्व्याजार्जवचेतसः / . . मया मिथ्या प्रियालापैविहितो रञ्जनक्रमः // 17 // अहो बतामृतस्पर्शस्तवाङ्गेषु विभाव्यते / अधुनैव मया दृष्टं यस्य प्रत्यक्षलक्षणम् // 18 // गूढाङ्गेन त्वया स्टष्टे ममास्मिन्रमणस्थले / / न जाने क्व गतं शूलं मत्पुण्यैस्त्वमिहागतः // 59 // इति श्रुत्वैव मद्वाक्यं सहसा साश्रुलोचनः / रत्यर्धविरतः शोकात्सोऽन्तः सानुशयः परम् // 60 // निजं वक्षो ललाटं च ताडयित्वा स पाणिना / हा कष्टं हा हतोऽस्मीति वदन्मामिदमब्रवीत् // 61 // पूर्व नैतन्मया ज्ञातं यन्मदङ्गसमागमः / शूलं हरति नारीणां मणिमन्त्रौषधादिवत् // 62 // . 1. 'जज्ञे' इति पाठः. 2. 'ईषद्रतिस्पष्टीकार्यः' इति पाठः.