________________ 4 समयः] समयमातृका। वेश्योपदेशविषये चतुराननत्वा न्मायाप्रपञ्चनिचयेन जनार्दनत्वात् / रिक्तप्रसक्तकलहैरतिभैरवत्वा___ त्सर्गस्थितिक्षयविधातृगुणा त्वमेव // 11 // उद्भिन्नयौवनमनोहररूपशोभा संभाविताभिनवभोगमनोभवानाम् / एणीदृशां त्वदुपदेशविवर्जितानां मातर्भवन्ति नहि नाम समीहितार्थाः // 12 // तस्माद्भजस्व परिकल्पितपुत्रिकां मां भक्तामनन्यशरणां शरणां प्रपन्नाम् / आत्मार्पणप्रणयिनां नवदर्शनेऽपि ___ जात्यैव पेशलधियः सदया भवन्ति // 13 // इत्यर्थिता कलावत्याः प्रत्यासन्नसुखस्थितिः / मनुष्यामिषकङ्काली कङ्काली तामभाषत // 14 // संक्रान्तहृदयस्नेहा निःशूलप्रसवोद्भवा / गर्भभारं विना पुत्रि त्वं सुताभिंमता मम // 15 // कङ्केन जन्मसुहृदा त्वदर्थमहमर्थिता / स्यूतेयं मे विटच्छिन्ना नासा येन पुनः पुनः // 16 // पात्रं मदुपदेशस्य त्वमेव त्रिदशोचिता। सद्भित्तिलिखितं चित्रं चित्रतामेति नेत्रयोः // 17 // श्रूयतां प्रथमं पुत्रि भूत्यै यत्कथयाम्यहम् / कलाकोषं तु कालेन नित्याभ्यासादवाप्स्यसि // 18 // न कुलेन न शीलेन न रूपेण न विद्यया / जीविताभ्यधिकं बुद्धिलभ्यं धनमवाप्यते // 19 // प्रायेण जगति प्रज्ञा नाना......"स्ति कस्यचित् / इयती जगतीं वेद्मि पूर्णामूर्णायुभिडैः // 20 // 1. संतुष्टा' इति पाठः. 2. 'उत्सवा' इति पाठः. 3. 'जनैः' इति पाठः.