________________ काव्यमाला। अनायाते परिचिते प्रत्याख्याते नवागते / उभयभ्रंशशोकेन सीदन्तीष्वपरासु च // 17 // भुक्तोज्झितानामन्यासु पुनः प्राप्तार्थसंपदाम् / जननी दुर्जनीकृत्य कुर्वाणासु प्रसादनम् // 18 // यदि त्वां सा सुजननी न जानीयात्सुधामयम् / अभविष्यदुपायो मे तत्कोऽसौ प्राणधारणे // 19 // नित्यावहारकुपितं सर्वार्थैरुपकारिणम् / ऋजुमावर्जयन्तीषु विदग्धासुंतवैरिघु(?) // 20 // अन्यनाम्ना प्रविष्टानां कलहे कूटकामिनाम् / कुटनीषु रटन्तीषु घण्टारणरणोत्कटम् // 21 // प्रसुप्तकटकक्षीबक्षीणक्षुद्राभृते गृहे / सखीभवनमन्यासु याम्तीष्वादाय कामुकम् // 22 // .. बालमार्जारिकाह्वानव्याजेनान्यासु वर्मनि / कटाक्षैः कलयन्तीषु दूरात्कामुकमामिषम् // 23 // एकः स्थितोऽन्तः प्राप्तोऽन्यः परस्याद्यैव दुर्ग्रहः / किं करोमीति जननीं प्रच्छन्तीष्वपरासु च // 24 // निशा दीर्घा नवः कामी तनयेयं कनीयसी / व्यत्येति कालहाराय वृद्धावर्गे कथोद्यते // 25 // नाज्ञातागृह्यते भाटी चरन्ति म्लेच्छगायनाः / इत्यन्यासु वदन्तीषु शून्यशय्यासु लज्जया // 26 // आयाते वार्यमाणेऽपि निर्माने क्षीणकामुके। व्याजकुक्षिशिरःशूलाक्रन्दिनीषु परासु च // 27 // मुग्धकामुकमित्राणां खेच्छया व्ययकारिणाम् / प्रस्तुते स्थिरलाभाय कुटनीभिर्गुणस्तवे // 28 // 1. 'दण्डं' इति पाठः. 2. स्वास्तवैरिषु' इति पाठः. 3. 'टते', 'ते' इति पाठौ. 4. 'व्यप्रेति' इति पाठः.