________________ 676 काव्यमाला.। तस्स पिआपडिवड्डा ण समप्पइ रइसुहासमत्ता वि कहा॥३४०॥' [असमाप्तोऽपि समाप्यतेऽपरिगृहीतलघुकः परगुणालापः / ... तस्स प्रियाप्रतिबद्धा न समाप्यते रतिसुखासमाप्तापि कथा // ] लजाविसर्जनं यथा'अगणिअसेसजुआणी बालअ वोलीणलोअमज्जाआ / अह सा भमइ दिसामुहपसारिअच्छी तुह कएण // 341 // ' [अगणिताशेषयुवका बालक व्यतिक्रान्तलोकमर्यादा / अथ सा भ्रमति दिशामुखप्रसारिताक्षी तव कृतेन // ] व्याधिर्यथा'अण्णह ण तीरइ चिअ परिवातअगरुअसंतावं / मरणविणोएण विणा विरमावेउं विरहदुक्खम् // 342 // " [अन्यथा न शक्यत एव परिवर्धमानगुरुकसंतापम् / मरणविनोदेन विना विरमयितुं विरहदुःखम् // ] उन्मादो यथा'अवलंबह मा संकह ण इमा गहलंघिआ परिन्भमइ / अत्थक्कगजिउभंतहित्थहिअआ पहिअजाआ // 343 // ' [अवलम्बध्वं मा शङ्कध्वं नेयं ग्रहलचिता परिभ्रमति / आकस्मिकगर्जितोद्धान्तत्रस्तहृदया पथिकजाया // ] मूर्छा यथा'जं मुच्छिआ ण असुओ कलंबगंधेण तं गुणे पडिअं। इअरह गजिअसद्दो जीएण विणा ण बोलिंतो // 344 // ' 1. 'पडिवहा' ग.घ, 2. 'सेसजुअणा' क., 'सेसजुआणो' ख. 3. 'असाहण' ख. 4. 'गअगरुअसंतापं घ., 'गरुअसंलावं' क.ख., 'गरुअं पिअअमस्स' इति गाथासप्त०. 5. 'मां संकरुणरसगाह' ख. 6. 'गज्जिअ उत्तन्त' क.ख.