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________________ 3] अनवद्य नय-वचनों को कहनेवाले, नवीन-नवीन मङ्गल के दाता, उच्चस्वरवाले, पापरूपी बादलों को हटाने में वायु के समान तथा मान-अहङ्काररूपी योद्धा को जीतनेवाले भगवान् आदि जिनेश्वर को मैं वन्दन करता हूँ॥ 5 // . (वसन्त-तिलका-छन्द) इत्थं स्तुतः प्रथमतीर्थपतिः प्रमोदाच्छ्रीमद"यशोविजयवाचक"पुङ्गवेन // श्रीपुण्डरीकगिरिराज-विराजमानो, मानोन्मुखानि' वितनोतु सतां सुखानि // 6 // इस प्रकार वाचक श्रेष्ठ श्रीमद् यशोविजयजी' द्वारा प्रानन्द-पूर्वक स्तृति किये गये, पुण्डरीक गिरिराज पर विराजमान भगवान् आदि जिनेश्वर सज्जनों को सम्मान-पूर्वक उन्नति एवं सुख प्रदान करे॥६॥ 1. मानोन्नतानि' इति पाठान्तरम् /
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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