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________________ [71 के साथ ही शास्त्रीय विषयों को क्रमशः प्रस्तुत करने के कारण शास्त्रकाव्य कहे जाते हैं, वैसे ही यहाँ भी दोनों का समावेश होने से उक्त संज्ञा देना अनुपयुक्त नहीं है। विषय की दृष्टि से इसमें (1) मोक्ष के उपाय (2) बौद्धों का अभिप्राय, (3) नैयायिक का अभिप्राय, (4) कुर्वद्रूपत्व के साधनार्थ बौद्धों का प्रयास, (5) बौद्धों के वक्तव्य का खण्डन, (6) न्याय मतानुसार वस्तुस्वभाव का निरूपण, (7) बौद्धों का वक्तव्य और उसका खण्डन, (8) नयप्रतिबन्दी का प्रकार, (6) धर्मकीर्ति और दिङ्नाग आदि के मत, (10) उनके द्वारा उक्त . मतों का पृथक-पृथक् परीक्षण (11) ज्ञेय और ज्ञान की अभिन्न जातीयता का खण्डन, (12) ज्ञेय की असत्यता का खण्डन आदि का बड़ा ही मार्मिक विवेचन किया है। इस विवेचन में तथागत, विशेषवादी, सौत्रान्तिक, सर्वशून्यतावादी विशेष माध्यमिक, विज्ञानवादी सुगतमत, योगाचार मत और शिरोमरिण मत का विचार हुआ है। ____ इस स्तव में मुख्य रूप से वसन्ततिलका छन्द का (1-66 तक) प्रयोग हुआ है, जबकि 6 पद्य शिखरिणी, 1 पद्य हरिणी, 1 पद्य शालिनी और दो पद्य शार्दूलविक्रीडित में बने हुए हैं। भगवान् महावीर के सुखदायी चरणकमलों की सूक्तरूप विकस्वर पुष्पों के द्वारा की गयी यह वाङ्मयी पूजा 'गागर में सागर' की उक्ति को चरितार्थ करती हुई अत्यन्त गम्भीरतत्त्व को उपस्थित करती है। प्राञ्जल दार्शनिक भाषा में भावगत मार्दव एवं भक्त-सुलभ हृदय की विशालता के साथ ही विनय और विवेक का स्वर्णसौरभ-सन्निवेश चमत्कारकारी है। स्याद्वाद की अनन्य निष्ठा ने अपूर्व वैदुष्य का संचार किया है। काव्योचित विषय-प्रतिपादन के साथ तर्कावतारवचनों से की जानेवाली ऐसी स्तुति को अनुत्तरभाग्यलभ्य बताते हुए स्वयं उपाध्याय जी ने कहा है कि
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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