SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के सहज-सुलभ पदों से भी रचना को किस प्रकार प्रस्तुत किया गया। है ? यह महाकवि की रचना में ही सुलभ है। . ___महाकवि श्रीयशोविजयजी महाराज ने स्तुति के माध्यम से भक्ति की वरीयता, आगमों की गरिमा, जिनाज्ञा की सर्वापत्तिनिवारकता, मानव-जन्म की सार्थकता, भगवान् की वाणी की महिमा, नामस्मरण की विशेषता और अष्टविध भयनाशनपटुता का सहज उल्लेख किया / ___ यहाँ भाषा-सौष्ठव और. वचो-विन्यास-विदग्धता पद-पद पर प्रस्फुटित हो रही है। उपेन्द्रवजा, वंशस्थ, उपजाति, इन्द्रवज्रा द्रुतविलम्बित, पृथ्वी और हरिणी जैसे छन्दों का समुचित प्रयोग कविकर्म की कुशलता का प्रतीक बना हुआ है। भाववाही वर्णन से प्रोतप्रोत यह स्तोत्र सचमुच ही कमनीय काव्य-छटा से अनुप्राणित है। कहीं-कहीं शब्द-मैत्री स्वरमैत्री और ताललयमैत्री का मङ्गल-मिलन तो बहुत ही आकर्षक है / यथा तमाल-हिन्ताल-रसाल-ताल-विशाल-साल-व्रजदाहधमैः। दिशः समस्ता मलिना वितन्वन्, दहन्निवाभ्रं प्रसृतः स्फुलिङ्गः // इसी प्रकार 108 और १०६वें पद्यों में बन्धनभय से मुक्ति दिलाने में नामस्मरण की समर्थता प्रकट करते हुए आपादकण्ठापित आदि पदों से श्रीमानतुंगसूरि के 'भक्तामरस्तोत्र' से सम्बद्ध घटना का स्मरण भी सहज हो जाता है / इन स्तुतियों के फलस्वरूप 'प्रतिभव में प्रभुपदरति की कामना' ही प्रधान है जब कि अन्तिम पद्य में 'यशोविजयश्री' की प्राप्ति अभ्यथित है। यह स्तोत्र 'जैनस्तोत्रसन्दोह' (भाग 1, पृ० 380-362) में मुद्रित (8) श्रीमहावीरप्रभुस्तोत्र दस मन्दाक्रान्ता और एक मालिनी वृत्त में निर्मित यह स्तोत्र भग
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy