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________________ 52 ] अथवा 'षडरचक्रस्तोत्र' की रचना में पादान्तयमक और चक्रबन्ध का पूर्ण प्रयोग किया जब कि आठवीं शती में श्रीमानतुंग सूरि ने 'भक्तामर स्तोत्र, नमिऊण थोत्त एवं भत्तिब्भरथोत्त' की रचनाएँ की / ये सूरिवर महान् प्रभावशाली थे, अतः इनकी इन रचनाओं में भक्ति के साथ ही मन्त्र, तन्त्र, यन्त्र, आभारणक तथा अन्यान्य शास्त्रीय विषयों का ग्रथन भी हुआ और इस प्रकार स्तोत्रसाहित्य में एक नए प्रयोग का और सूत्रपात हो गया। भक्तामरस्तोत्र इनमें सर्वाधिक प्रिय हया जिसके परिणाम-स्वरूप 16 टीकाएँ, तथा 22 से अधिक पादपूर्तिमूलक काव्यों की सृष्टि हुई / ' श्रीहरिभद्रसूरि ने एक लघु किन्तु महत्त्वपूर्ण 'संसारदावानल-स्तुति' की 'भाषासमक' पद्धति में रचना की तो श्री बप्पभट्ट सूरि ने 'चतुर्विंशतिका' द्वारा यमकप्रधान स्तुति का निर्माण किया। दो चरणों की समान प्रावृत्तिवाले यमक का प्रयोग यहाँ सर्वप्रथम हुआ है। इसी के साथ 'शारदा-स्तोत्र' अथवा 'अनुभूतसिद्ध सारस्वत-स्तव' में मन्त्राक्षरों का समावेश करते हुए पूर्व परम्परा को भी निभाया। ___ ग्यारहवीं शती के प्रथम चरण में जम्बू मुनि ने 'जिनशतक' में स्रग्धरा छन्द का प्रयोग तथा शब्दालंकारों का समावेश किया, तो 'शिवनाग' ने 'पार्श्वनाथ महास्तव, धरणेन्द्रोरगस्तव अथवा मन्त्र स्तव' की रचना की। इसी शती के तृतीय चरण में बाल ब्रह्मचारी श्री शोभनमुनि ने 'स्तुति-चतुर्विंशतिका' अथवा 'शोभनस्तुति' की रचना द्वारा 'स्तुतिचतुर्विशतिका' की यमकमय स्तुति-परम्परा को आगे बढ़ाया / इस कृति पर 8 टीकाएँ हुई हैं तथा डा० याकोबी ने जर्मन में अनुवाद किया है जब कि गुजराती और अंग्रेजी अनुवाद प्रो० १-भक्तामर स्तोत्र की महत्ता एवं पादपूर्ति काव्यों के बारे में इन पंक्तियों के लेखक द्वारा लिखित भूमिका एवं परिशिष्ट लेख देखें-'श्रीभक्तामररहस्य' (गुजराती संस्करण-सं० शतावधानी पं० धी० टो० शाह)।
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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