________________ 48] संस्तव तथा स्तवन ये संस्कृत शब्द एक दूसरे के पर्यायवाची हैं, इस लिये किसी कृति को स्तोत्र कहा जाता है तो किसी को किसी अन्य पर्यायवाचक नाम दिया जाता है। इस प्रकार का जो जैन-साहित्य है उसका भिन्न-भिन्न दृष्टि से विचार करने पर स्तुति-स्तोत्रों के विविध वर्ग किपे जा सकते हैं।' उनमें से कुछ के निदर्शन इस प्रकार हैं 1. पद्यात्मक, गद्यात्मक और उभयात्मक स्तोत्र .. 2. संस्कृत, प्राकृत, द्राविड़ तथा फारसी भाषात्मक स्तोत्र 3. स्वाश्रयी तथा पराश्रयी 4. मौलिक और अनुकरणात्मक 5. व्यापक और व्याप्य - ये लेखन-पद्धति और भाषा की दृष्टि से किये गये वर्ग हैं, जबकि विषय की दृष्टि से इनके वर्ग, उपवर्ग तथा अन्तर्वर्ग, दिखलाये हैं। जिनमें 10 प्रकार निम्नलिखित हैं स्तति-स्तोत्र १-तत्त्वप्रधान (दार्शनिक) . २-भक्तिप्रधान ३-जिनविषयक १०-अजिन विषयक *एक (जिन) ५-अनेक (जिन) ६-शुद्ध ६-शुद्ध मिश्रित . ८-विशिष्ट 8-सामान्य १-जनसंस्कृतसाहित्यनो इतिहास-भाग-२, पृ०२७८ /