________________ [47 से उसकी अभीष्ट सिद्धि हो जाती है। इन तीन कोटियों में प्रथम कोटि के स्तोत्र वैदिक सम्प्रदाय के स्तोत्रों में पर्याप्त उपलब्ध होते हैं। द्वितीय कोटि के स्तोत्र विभिन्न आख्यानों-उपाख्यानों में मिलते हैं तथा तृतीय कोटि के स्तोत्र प्रत्येक सम्प्रदाय में नित्यपाठ में प्रयुक्त होते हैं। इनके अतिरिक्त मन्त्रगर्भ-स्तोत्र भी होते हैं जो मन्त्रमयता के कारण स्वयं सिद्ध होते हैं / जैनस्तोत्र साहित्य भारतीय साधना-परम्परा में जैन, बौद्ध और वैदिक सम्प्रदायों की साहित्य सम्पदा सम्पन्नरूप से समृद्ध है / इनमें जैनसाहित्य प्राकृत, अर्धमागधी और संस्कृत में, बौद्ध साहित्य पालि और संस्कृत में तथा वैदिक साहित्य वैदिक संस्कृत एवं श्रेण्य संस्कृत में संकलित है। यही परम्परा स्तोत्रसाहित्य में भी भाषा की दृष्टि से अवतरित एवं प्रवाहित होती रही है। उत्तरकाल में लोकभाषा में भी यह साहित्य निर्मित होता रहा है, हो रहा है और होता ही रहेगा। ___जैन स्तोत्र-साहित्य संस्कृतभाषा में अपूर्व गौरव को प्राप्त है। सहस्रों स्तोत्रकारों ने अपनी अनवरत भक्ति से भीने भावपुष्पों की मालाएँ प्रभु-चरणों में अर्पित की हैं। यह कहा जाता है कि संस्कृत भाषा में जैनसाहित्य के आलेखन का सूत्रपात श्रीउमास्वाति ने ही सर्वप्रथम किया था, किन्तु उत्तरकाल में तो इस भाषा में न केवल जैनसाहित्य ही लिखा गया अपितु जैनेतर संस्कृत साहित्य में उसकी विभिन्न धाराओं के मूर्धन्य ग्रन्थों पर उत्तमोत्तम टीका-प्रटीकात्रों की रचना भी की गई। फलतः आज जैनसाहित्य संस्कृत-वाङ्मय में अपना प्रौढ़ स्थान बनाये हुए है और उसमें भी स्तोत्र-साहित्य तो और भी अपूर्वता को प्राप्त है। जैनस्तोत्रों के प्रकार ___ संक्षेप में जैनस्तोत्रों के प्रकारों पर विचार करते हुए प्रो. श्री * हीरालाल रसिकदास कापड़िया ने लिखा है कि-'स्तुति, स्तोत्र, स्तव'.