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________________ [ 43 उदाहररमार्थ-संख्याश्रित-स्तोत्र-मुक्तक, पञ्चक, षट्पदी, सप्तक, अष्टक, दशक, द्वादशी, पञ्चदशी, षोडशी, विंशतिका, चतुविंशतिका, द्वात्रिंशिका, पञ्चाशती, शतक, पञ्चशती, सहस्रनाम आदि / फलाश्रितस्तोत्र-भिग्रह, अनुग्रह, उपालम्भ, पीडाहर, ऋणहर, दारिद्रयनाशक, रक्षा, वर्म, कवच, पञ्जर, शरण आदि / ध्यानपूजाश्रित-न्यास, ध्यान, हृदय, प्रार्थना, अपराध क्षमापन, मानस-पूजा प्रात्मबोध, कैवल्य वैराग्य आदि / मन्त्रपदाश्रित-विभिन्न देवताओं के मन्त्रों के समावेश से युक्त / शास्त्राश्रित-भिन्न-भिन्न शास्त्र एवं सम्प्रदाय के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करनेवाले स्तोत्र / काव्यकलाश्रित-जिसमें १-'कोष' की दृष्टि से नाममाला अष्टोत्तरशतनाम, सहस्रनामादि, 2- 'भाषा' की दृष्टि से विविध भाषाओं के सौष्ठव से सज्जित, ३-'छन्द' को ध्यान में रखकर बनाये गये आर्यादि स्तोत्र, 4- अलंकार' को माध्यम बनाकर लिखे गये स्तोत्र जिनमेंशब्द और अर्थगत अलङ्कारों के अङ्कन प्रमूखता को लिये रहते हैं, 5- 'चमत्काराश्रित'-काव्य एवं तत्सम्बन्धी अन्यान्य विभिन्न चमत्कार, जैसे चित्रबन्ध, समस्यापूर्ति, श्लेष, सरस्वती, कमल आदि प्रमुख पदगर्भ, मन्त्र, यन्त्र, तन्त्र, योग, भेषज, आभारणक आदि को गभित रखकर बनाये गये स्तोत्र आते हैं। इसी प्रकार उपदेशाश्रित --जीव, आत्मा, मन, मानव आदि को लक्ष्य में रखकर उनका कल्याण करने की भावना से दिये गये उपदेशों को आवजित करने वाले स्तोत्र आदि और भी भेद गिनाये जा सकते हैं। ___ इसी प्रकार 'रुचीनां वैचित्र्याद् ऋजु-कुटिलनानापथजुषाम्' के * अनुसार भक्ति, प्राचार्य और कवियों के वाग्विलास का वर्षा के दिनों में अनायास गिरी हुई बूंदों के समान यथारुचि, यथामति, यथागति 1. . ऐसे कतिपय स्तोत्रों की विधानों के परिचय के लिए 'चारणस्मा' उ० गज' रात से प्रकाशित 'श्री भटेवापार्श्वनाथ स्मृतिग्रन्थ' में लेखक का ही 'भारतीयं स्तुतिसाहित्यं जैनसम्प्रदायश्च' शीर्षक लेख द्रष्टव्य है।
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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