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________________ 42 ] - स्तवैरुच स्तवैरुच्चावचैः स्तोत्रः पौराणः प्राकृतैरपि / स्तुत्वा प्रसीद भगवन्निति वन्देत दण्डवत् / ' छोटे-बड़े, पौराणिक अथवा प्राकृत स्तव-स्तोत्रों के द्वारा स्तुति करके 'भगवन् ! प्रसीद' ऐसा कहे और दण्डवत् प्रणाम करे। . . . स्तोत्रों के प्रकार 'शौनकीय बृहदेवता' में कहा गया है कि 'स्तुतिस्तु नाम्ना रूपेण कर्मणा बान्धवेन च / स्वर्गायुर्धन-पुत्राद्यैरथैराशीस्तु कथ्यते // ' अर्थात् स्तुति को नाम, रूप, कर्म और बन्धुत्व,के द्वारा व्यक्त किया जाता है तथा स्वर्ग, आयु, धन और पुत्रादि प्राप्ति की भावना से आशीर्वादात्मक स्तुति भी की जाती है। इसके आधार पर १-नामस्तोत्र, २-रूपस्तोत्र, ३-कर्मस्तोत्र, ४-गुरणस्तोत्र और ५-प्राशीःपरक स्तोत्र ऐसे पाँच प्रकार किए जा सकते हैं / अन्य प्राचार्यों का अभिमत है कि मूलतः तीन प्रकार हैं-१-आराधना-स्तोत्र, २-अर्चना-स्तोत्र तथा ३-प्रार्थना-स्तोत्र / इन प्रकारों में 'आराध्य के रूप, गुण तथा ऐश्वर्य का विस्तृत वर्णन जिनमें रहता है, वे पाराधना-स्तोत्र कहलाते हैं। भाव-भक्तिमूलक द्रव्यपूजा के विविध प्रकारों के साथ ईश्वर के कृतित्व एवं कर्तृत्व का जहाँ विश्लेषण हो, वे अर्चनास्तोत्र कहे जाते हैं। तथा आराध्य की प्रशंसा, आराधक की दयनीयता एवं दीनहीनता का प्रदर्शन करते हुए जहाँ प्रभु की विशेष अनुकम्पा-प्राप्ति के लिए प्रार्थना, निवेदन आदि किए जाते हैं, वे प्रार्थना-स्तोत्र की कोटि में आते हैं। कुछ विद्वानों का विचार है कि-१-द्रव्य, २-कर्म, ३-विधि और ४-अभिजन नामक स्तोत्रों के चार विभाग होते हैं जब कि उपलब्ध स्तोत्र-साहित्य के आधार पर तो स्तोत्रों के अनेक प्रकार किए जा सकते हैं। 1 श्रीमद्भागवतपुराण, 11 / 27 / 45 /
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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