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________________ उपोद्घात स्तोत्र-साहित्य दिग्दर्शन तथा स्तोत्रावली :: एक अनुचिन्तन :: अक्षुण्ण-परम्परा __ हमारा काव्य-संसार अपार है। इसमें कोटि-कोटि काव्य-कलाकुशलों ने अपनी-अपनी काव्य-केलियाँ कुतूहल-पूर्वक प्रकट की हैं, जिसका सामूहिक सङ्कलन करना विधाता से भी सम्भव नहीं है। क्योंकि अनेक कविवरों ने वचन-वैचित्र्य सम्पन्न सुमन समर्पित किए हैं, कई प्राचार्यों ने भाव-भक्ति की धारा से अराध्य के चरणों को पखारा है, बहुत से प्रभुकृपा प्राप्त साधकों ने अपने अन्तर की वीणा के तारों पर प्रार्थना के सुमधुर गीत गाए हैं तो लक्ष-लक्ष लक्ष्य प्राप्ति के इच्छुकों ने लीलामय की ललित लीलाओं के प्राख्यानों से पूर्ण अपनी भारती से देवाधिदेव की आरती उतारी है। इन्हीं के प्रभाव से यह असार संसार सारपूर्ण बना और उन वचनों का आश्रय लेकर अनेक जीव आत्म-कल्याण करने में अग्रसर हुए। यह परम्परा आगम और वेद दोनों के उद्भव काल से ही अक्षुण्ण रूप से प्रवहमान है। पाराधना के मानबिन्दु और स्तुति आगमों की अपरिमेय ज्ञान-गरिमा का अवगाहन करनेवाले पूर्वाचार्यों ने मानव-जीवन की सफलता एवं कर्मनिर्जरा-पूर्वक शुभ कर्मों के उदय के लिए आराधना के विभिन्न मार्गों का प्ररूपण किया है। इन मार्गों में कुछ सूक्ष्म और कुछ स्थूल संकेतों का समावेश हुआ है। सूक्ष्म-सङ्केत उत्तम साधकों के लिए निर्दिष्ट हैं, जिनमें उत्कृष्ट योग को भूमिकाएँ तथा मान्त्रिक-प्रक्रियाओं के साथ-साथ लोकोत्तर वैराग्य की आवश्यकता होती है। ऐसी साधना में सुबुद्ध एवं कृतशास्त्र गुरु
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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