________________ 36 ] सभी श्रुतसेवा के इस कार्य में अनेक प्रकार से सहायक बने तदर्थ धन्यवाद देता हूँ तथा देव, गुरु और धर्म के प्रति ऐसा भक्तिभाव सदैव बना रहे ऐसी शुभकामना करता हूँ। स्तोत्र के अनुवाद का कार्य अत्यन्त कठिन है / अनुवाद की पद्धति एवं अभिव्यक्ति भी पृथक्-पृथक् होती है। यहाँ एक पद्धति का अनुसरण करते हुए अनुवाद प्रस्तुत किया गया है / अतः अनुवाद में जो भी त्रुटियां रही हों उन्हें पाठकगणं सुधार कर पढ़ें तथा संस्था को भी सूचित करें। अन्त में सभी प्रात्माएँ इन स्तोत्रों का सहृदयंतापूर्वक अध्ययनअध्यापन करके प्राध्यात्मिक प्रकाश प्राप्त करें यही मङ्गल कामना है। '-मुनि यशोविजय डॉ० बालाभाई नाणावटी हॉस्पीटल विलेपारले (बम्बई) दि०१३-४-७५