________________ [ 261 ___ एवमादि स्फुरद्धर्मकृत्यस्फातिमशिश्रियत् / * श्रूयते च जिनेन्द्राणां श्रीपूज्यानाञ्च भक्तितः // 28 // और इसी-पर्युषणा पर्व में पापनाशपूर्वक पटह का उद्घोष करके पाँच दिनों में 'श्रीकल्पसूत्र' की वाचना हुई है तथा मासिक, पाक्षिक आदि मुख्य तपस्याएँ पूर्ण हुई हैं। छठ, दो आठम आदि तपस्याओं में बड़ी धीरता दिखलाई है / सार्मिक बन्धुओं का परस्पर स्वामिवात्सल्य हमा, दीनों अनाथों को इच्छा से भी अधिक दान दिया गया। इस प्रकार प्रमुख शोभायमान धर्मकृत्य बहुत हुआ है, जो श्रीजिनेश्वर भगवान् और आप श्रीपूज्य के चरणों की भक्ति के प्रभाव का ही परिणाम है // 25-26-27-28 // [गुरुवन्दना-महिमवर्णनात्मकस्तृतीयो भागः] . [गुरुवन्दना और महिमा वर्णनात्मक तीसरा भाग] यः सूत्रसिन्धुशीतांशुरुत्सूत्राम्भोधिकुम्भभूः। वन्दामहे वयं तस्य चरणाम्भोजयामलम् // 1 // तथा जो 'सूत्र' रूपी समुद्र को उल्लसित करने के लिये चन्द्रमा के समान हैं और उत्सूत्ररूपी समुद्र का गर्व हरण करने के लिये अगस्त्य मुनि के समान हैं ऐसे गुरुदेव के दोनों चरणों की हम वन्दना करते हैं // 1 // उत्सूत्राम्भोनिधौ यस्योपदेशो वडवानलः / __षत्रिंशद्गुणपत्रिंशद गुणाढ्यं तं गुरु श्रये // 2 // उत्सूत्ररूप समुद्र के लिये जिन (गुरुदेव) के उपदेश वडवानल के