________________ [ 245 प्राचार्य श्रीमद्विजयप्रभसूरीश्वरजी के गुणगणों से गभित स्तुति-गीति 'श्री विजयदेव सूरीश्वर' के पट्टरूप आकाश में 'श्री विजयप्रभ सूरि' नामक सूर्य विजय को प्राप्त हो रहे हैं, जिन्होंने 'वैशिष्ट्य-सिद्धि' नाम के (ग्रन्थ अथवा मत) के प्रसङ्गों से अपने ही घर (सम्प्रदाय) में योग क नित्यसम्बन्ध से तर्क-शास्त्र को सुशोभित किया // 1 // केवल एक ज्ञान ही विश्वकृत्-जगत् का कर्ता है, इस प्रकार जो लोग (अन्य मतानुयायी) मानते हैं, उनके इस कथन में दृष्टबाधा दोष आता है। अर्थात् सर्वज्ञ ईश्वर के जगत्कर्तृत्व में किसी के द्वारा दृष्ट न होने के कारण दृष्टबाधा नामक दोष आता है। इस प्रकार जगत्कर्तृत्व के सम्बन्ध में लोगों को उचित उत्तर देने में जिनकी बुद्धि सावधान-युक्तिपूर्ण है अथवा जो उचित समन्वय करते हैं ऐसे श्री विजय-प्रभसूरि विजय को प्राप्त हो रहे हैं // 2 // ___ जो बौद्धमतानुयायी अपोह-(बुद्धि के गुण-विशेष) का शक्ति के के रूप में पाख्यान करते हैं तथा जो मीमांसक जाति-शक्ति का पाख्यान करते हैं, वे भी जिनकी क्य-द्वैत से पवित्र बनी हुई वाणी का हठपूर्वक आश्रय लेते हैं, ऐसे श्रीविजयप्रभसूरि विजय को प्राप्त हो रहे हैं / / 3 // _ 'महर्षि कपिल 'सांख्य-दर्शन' में प्रकृति को ही प्रधान कारण मानते हैं और उनके जगत्कर्तृत्व में कहीं भी आत्मा की कोई शक्ति नहीं है, अतः यहाँ बन्ध और मोक्ष की व्यवस्था दुर्घट हो जाती है'इस प्रकार के विमर्श में जिनकी बुद्धि सदा जागृत रहती है ऐसे श्री विजयप्रभसूरि विजय को प्राप्त हो रहे हैं // 4 // . जो शाब्दिक-वैयाकरण स्फोट (व्याकरण के एक शाब्दिक ज्ञान