________________ [ 235 प्राप्त नहीं कर सकता जिसे कि समाधि-सम्पन्न-शान्तचित्त योगी प्राप्त करता है // 6 // नूनं परोक्षं सुखसमसौख्यं, मोक्षस्य चात्यन्तपरोक्षमेव / प्रत्यक्षमेकं समतासुखन्तु, समाधिसिद्धानुभवोदयानाम् // 7 // यह निश्चित है कि स्वर्ग का सुख परोक्ष है अर्थात् मृत्यु के पश्चात् प्राप्त होनेवाला है और मोक्ष का सुख तो अत्यन्त परोक्ष है ही। अतः प्रत्यक्ष सुख है तो एक मात्र समाधि से सिद्ध और अनुभव से प्राप्त समता-सुख ही है // 7 // प्राणप्रियप्रेमसुखं न भोगास्वादं विना वेत्ति यथा कुमारी। समाधियोगानुभवं विनव, न वेत्ति लोकः शमशर्म साधोः // 8 // जैसे कुंवारी कन्या प्राण-प्रिय-पति के प्रेम-सुख और भोग-सम्भोग से प्राप्त प्रानन्द के आस्वाद को नहीं जानती है, उसी प्रकार समाधिसाम्य के अनुभव के बिना यह संसार साधु के शान्त-वैराग्य से उत्पन्न आनन्द को नहीं समझ सकता है / / 8 // न दोषदर्शिष्वपि रोषपोषो, गुणस्तुतावप्यवलिप्तता नो। न दम्भसंरम्भविधेलवोऽपि, न लोभसंक्षोभजविप्लवोऽपि // 6 // लाभेऽप्यलाभेऽपि सुखे च दुःखे, ये जीवितव्ये मरणे च तुल्याः। रत्याप्यरत्यापि निरस्तभावाः, समाधिसिद्धा मुनयस्त एव // 10 // यहां दो पद्यों में समाधि-सिद्ध मुनियों की स्थिति का वर्णन करते ... 'हुए कहते हैं कि___जो दोष देखने वाले व्यक्तियों पर क्रुद्ध नहीं होते, गुणों की प्रशंसा करने पर भी उसमें लिप्त नहीं होते (अर्थात् न प्रसन्न होते हैं और न